अस्सी करोड जनता को मुफ्त का अनाज।

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धीरज फूलमती सिंह. स्तम्भकार /मुंबई वार्ता

किसी बस्ती में एक बहेलिया रहा करता था। वह रोज सुबह उठकर जंगल में भीतर तक जाता और खूबसूरत पक्षियों के आकर्षक पंख बिटोर लाता और उनको बाजार में बेच अपनी रोजी रोटी चलाता! दूसरे बहेलियों के बनिस्बत यह बहेलिया थोडा नेक दिल था। यह पक्षियो को पकड़कर पिंजरे में बंद नही करता था,बस उनके खूबसूरत और आकर्षक पंखों को बटोर लाता और उनको बाजार में बेचने के बाद मिलों पैसो से अपना और परिवार का भरण-पोषण करता। जंगल में आते जाते बहेलिये को रोज एक खुबसूरत चिड़ियों का समूह देखा करता। शुरू में तो वे उस बहेलिये से डरा करते और डर कर छुप जाते पर धीरे धीरे उन पक्षियों ने जाना की यह बहेलिया तो बहुत अच्छा है। किसी भी चिडिया को कोई नुकसान नही पहुंचाता है,सिर्फ उनके खूबसूरत पंखों को जमा करता है।

इन चिड़ियों के समूह में कुछ नौजवान पंक्षी थे,जो दाना खाने के लिए दूर जाने से कतराते थे, तो कुछ बुजुर्ग पक्षी भी थे जो दाना जमा करने में आलस कर जाते थे। जैसे तैसे भगवान भरोसे इन खुबसूरत पक्षियों का समूह चल रहा था। एक दिन पता नही क्या हुआ, जंगल में जाते उस नेक दिल बहेलिये के सामने इन खूबसूरत चिडियों का समूह अचानक से आ गया। उस वक्त न बहेलिया उत्तेजित हुआ और न कोई चिडिया ही डरी। बहेलिया कईयों बार जंगल से गुजरा था मगर इतने खूबसूरत पक्षियों का समूह कभी उसने भी नही देखा था। उन खूबसूरत चिड़ियों को देखकर बहेलिया के मन में लालच आ गया लेकिन फिर भी उसने उन पक्षियों को पकडने की नही सोची,बस किसी भी तरह वह उनके आकर्षक पंख लेना चाहता था।

लालच होने पर मानव को युक्ती बहुत सूझती है,बहेलिये को भी युक्ती सूझी। उसने बडे प्यार से उन खूबसूरत पक्षियों को अपने पास बुलाया और उनको प्रस्ताव दिया कि अगर सभी पक्षी कुछ-कुछ दिनों के अंतराल में अपने पंख देते रहे तो वह उनको रोज मुफ्त में हरे चने के दाने खिलाएगा। पक्षियों को उस बहेलिये का यह प्रस्ताव बहुत शानदार लगा। उन्होने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस बहाने पक्षियों को लगा कि अब उन्हे खाना इकट्ठा करने दूर दराज के इलाकों में नही भटकना पड़ेगा और बहेलिये को भी पंखो के लिए घने जंगल में नही जाना पडेगा।….

दोनो के लिए यह Win-Win Situation था।अब बहेलिया रोज आता, खूबसूरत पक्षियों से हाय हैलो करता,बडे प्यार से बतियाता और फिर उनको खाने के वास्ते हरे चने के दाने डालता। उसके बाद समूह के सभी पक्षी बारी बारी से अपना एक-एक पंख नोच कर बहेलिये के सामने कर देते। बहेलियां उनको इकट्ठे कर बाजार में बेच आता। धीरे-धीरे यह सिलसिला चल निकला। पक्षियों को खाने के दाने खोजने के लिए भटकना नही पडता, बहेलिये ने उनकी भोजन संबंधित समस्या हल जो कर दी थी लेकिन शायद उन पक्षियों को इस बात का भान नही था कि “मुफ्त मे मिली चीज की बहुत महंगी कीमत चुकानी पडती है।”

पक्षियों से साथ भी यही हुआ। बहेलियें के मुफ्त हरे चने के फेर में पक्षियों के खूबसूरत पंख धीरे-धीरे खत्म होने लगे। अब तो उडने के बजाय पंख भी नही फडफडा पाते थे,उडना भी भूल गए थे। एक बुजुर्ग पक्षी ने सबको सावधान करने की कोशिश भी की पर किसी के कान पर जूं भी नही रेंगी! सबको मुफ्त मे मिलने वाले हरे चने बडे अच्छे लग रहे थे। एक दिन ऐसा आया कि सभी पक्षियों के खूबसूरत पंख खत्म हो चुके थे, अब वे उड भी नही पाते थे। बीना पंखों के अब वे बडे भद्दे लगते थे मगर बहेलिया बडा दयालू था, वह अब भी उन पक्षियों के लिए हरे चने लाता पर उतने ही देता जितने में सिर्फ उनका आधा ही पेट भर सके! अब उन पक्षियों का समूह उस बहेलिये की मेहरबानी पर आश्रित हो गया था। यह अलग बात है कि बहेलिये के लिए अब उन पक्षियों का महत्व खत्म हो गया था।

■ नोट – उन पक्षियों के जैसा ही बुरा हाल मुफ्त में अनाज के मजे ले रही उस अस्सी करोड जनता का भी होने वाला है और मुफ्त बिजली,पानी और बस यात्रा के नशे में झूम रहे दिल्ली वासियों का भी होने जा रहा है।

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