“ईश्वर नाटक”-रावण के दृष्टिकोण से रामायण!

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डाॅ धीरज फूलमती सिंह/मुंबई वार्ता

रामायण यानि राम का अयण मतलब राम की यात्रा! रामायण में भगवान राम की जीवन यात्रा का भावनात्मक वर्णन है। रामायण भगवान राम के बारे में बताती है। वैसे ही “ईश्वर” नाटक है,जो हमे रावण के दृष्टिकोण से रामायण को समझाती है,अवगत कराती है। महाकाव्य रामायण अगर रावण के दृष्टिकोण से लिखी जाती तो कैसी होती,अगर यह जानना है तो ईश्वर नाटक इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है। ईश्वर नाटक हमे जरूर देखना चाहिए।

मैने भी बीते शनिवार 29 जून को दक्षिण मुंबई के नरीमन पोंइट में “एनसीपीए टाटा थियेटर” में “ईश्वर” का मंचन देखा।ईश्वर” नाटक में मुख्य पात्र “ईश्वर” (रावण) है, जो एक ऐसा व्यक्ति है,जिसे लगता है कि उसके पास महाशक्तियाँ हैं और वह सब कुछ बदल सकता है। इस नाटक में, रावण की आंतरिक दुनिया की पुनर्कल्पना की गई है, और यह अच्छाई और बुराई के पारंपरिक चित्रण पर सवाल उठाता है। नाटक का नाम “ईश्वर” इसलिए रखा गया है क्योंकि यह पात्र खुद को भगवान के समकक्ष,शक्तिशाली और सर्वज्ञ मानता है।  नाटक के मंचन और संवाद अदायगी में काव्यात्मक शैली और तुकबन्दी का बहुत लाजवाब प्रयोग किया गया है।

संवादों में कही-कहीं थोडी सी क्लिष्ट पर आम बोल चाल की हिदी भाषा का उपयोग हुआ है जो दर्शकों को आसानी से कलाकारों के साथ जोड देता है। दर्शक अपने को कलाकारों के साथ आत्मसात कर लेते है। रामायण जैसी पौराणिक महाकाव्य के मंचन की संवाद प्रस्तुती में कही-कही एकाध उर्दू के शब्दो का इस्तेमाल जरूर खटकता है।नाटक में रावण के संवाद इतने बढ़िया तरीके से लिखे गये है कि बरबस बारंबार ताली बजाने के लिए हाथ उठ जाते है। उस पर पुनित इस्सर जैसे मंझे हुए कलाकार का अभिनय “सोने पर सुहागा” जैसा लगता है। कही से भी ऐसा नही लग रहा था कि इस अभिनेता ने 65 साल की उम्र पार कर ली है। वही 40-45 की उम्र वालों सी चंचलता और चपलता आज भी कायम है। अभिनेता पुनीत इस्सर का जैसा व्यक्तित्व है,डील-डॉल है,आवाज में जैसा वजन है, खनक है, उन पर रावण,दुर्योधन और हिरण्कशयप जैसे रोल ही जमते और जंचते है।

नारी पात्रो के द्वंद्व की कथा भी है “ईश्वर”! नाटक का मूल विषय रावण पर आधारित है पर रामायण के सभी नारी पात्रों सीता,मंदोदरी, सुलोचना,सुपर्णखा के दर्द,द्वंद,असहजता और सह अस्तित्व की कहानी है.. “ईश्वर!” इस नाट्य मंचन में रामायण की नारी पात्रो को बहुत बेहतरीन तरीके से उभारा और उकेरा गया है!सीता,मंदोदरी संवाद में एक मजबूर पत्नी और एक मजबूत धर्मपत्नी का फर्क साफ झलकता है। मंदोदरी मजबूर है कि उसका पति दूसरी नारी का अपहरण कर लाया है और सीता मजबूत है कि उसे दृढ विश्वास है कि उसका पति उसे निश्चित ही छुडा ले जाएगा। एक पत्नी है जिसे अपने पति पर गर्व है तो एक पत्नी है जिसे अपने पति के साथ रहना लाचारी है,बेबसी है। मंदोदरी के चेहरे पर अपने पति की हत्या का डर भी साफ नजर आता है।रावण का पात्र निभाने वाले मुख्य कलाकार पुनित इस्सर के अलावा मेघनाथ ( इंद्रजीत) का पात्र निभाने वाले कलाकार सहादुर्र रहमान की आवाज बहुत दमदार है,बुलंद है,आवाज में भार है। वही रावण सीता संवाद में हिंदी फिल्मों का असर साफ नज़र आता है।

भारत भूमी के नायक श्रीराम का चरित्र ही ऐसा है कि दर्शकों के मन में राम का पात्र निभाने वाले कलाकार के लिए भी राम सी श्रद्धा पैदा हो ही जाती है। इसमे कलाकार का कोई अधिक योगदान नही होता,राम का आकर्षण और महिमा ही ऐसी है। ईश्वर नाटक में भी ऐसा ही कुछ है।

नाना और मेघनाथ के आपसी संवाद गुदगुदी अवश्य पैदा करते है। नाना का पात्र नाटक के बीच-बीच में हंसाता जरूर है लेकिन ऐसा लगता है कि नाटक में इस पात्र को हंसाने के लिए ही जानबूझकर जबरदस्ती ठूंसा गया है,अन्यथा नाट्य मंचन में यह पात्र नही भी होता तो कुछ फर्क पडने वाला नही था।वही दूसरी तरफ सुलोचना के पात्र ने अभिनय तो ठीक ही किया है लेकिन कद में छोटी होने के कारण अधिक नही जमी है। राक्षस कुल की महिलाए कद में छोटी नही हुआ करती थी,सुलोचना की कास्टिंग शायद गलत हो गई है ?नाटक में ऐसे कई संवाद है,जो दर्शको को बार-बार मुस्कुराने को मजबूर कर देते है। उनके मन में गुदगुदी पैदा करते है। ऐसे कई संवाद है जिसे सुन दर्शक बारंबार ताली बजाने के लिए मजबूर हो जाते है।

नाटक में लाइटिंग और संगीत की जुगलबन्दी बहुत ही आकर्षित करती है। मंच सज्जा यानि कला निर्देशन (आर्ट डायरेक्शन) बहुत ही उम्दा है। बैक स्टेज का काम भी बहुत फुर्तीला और सामंजस्यपूर्ण है। बैक स्टेज की तारीफ भी जरूर बनती है।नाटक की शुरुआत बडी भव्यता के साथ बडे दमदार तरीके से होती है। दर्शको को कुर्सी से बांधने पर मजबूर कर देती है लेकिन जैसे-जैसे नाटक अपने अंत की तरफ बढता है,थोडा सा सीथिल और बोझिल होता जाता है मगर जैसे ही स्टेज पर राम का आगमन होता है फिर अंत में रावण और राम के बीच संवाद के समय नाटक में फिर से जान आ जाती है। भले रामायण में राम की लीला का वर्णन है। ईश्वर नाटक के रूप से ऐसा लगता है कि राम लिला और रावण के अहंकार के पीछे शिव का ही किया धरा है। भगवान शिव ही रामलीला के असली रचईता है।शिव का पात्र निभाने वाले अभिनेता अमित पचोरे ने दमदार अभिनय से गजब का प्रभाव डाला है,उपर से उनके “शरीर सौष्ठव” ने भी प्रभावित किया है। रावण के साथ के दृश्यों में शिव के पात्र को उंची पादुका पहना कर अच्छा बैलेंस बनाने का प्रयास हुआ है।

रावण को यह घमंड था कि वह ईश्वर है पर असली ईश्वर तो शिव ही है,यह आखिर में साबित हो जाता है। ईश्वर नाटक के अंत में यह कहने का प्रयास किया गया है कि राम भारत के नायक है लेकिन दर्शको के लिए श्रृष्टि के नायक तो भगवान शिव ही साबित होते है।ईश्वर नाटक का जिन्होने संगीत दिया है वे “अनिक शर्मा” प्रसिद्ध संगीतकार ए आर रहमान के शिष्य है। इस नाटक के संगीत में ए आर रहमान के संगीत की हल्की सी झलक साफ महसूस होती है। नाटक के मध्य मंच नाद में ए आर रहमान का असर नज़र भी आता है। राम-सुलोचना और अशोक वाटीका में रावण सीता संवाद के समय पार्श्व में बजती सितार की ध्वनी बरबस आकर्षित करती है,मधूर लगती है। सूकून देते है।

धनुष पर प्रत्यंचा खीचने का स्वर भी आकर्षित करता है। संगीतकार “अनिक शर्मा” बहुत हुनरमंद है। सिनेमा का माध्यम नायकत्व का होता है तो नाट्य विद्या निर्देशक का खेल होती है। आज देश में जिस तरह का माहौल है,ऐसे में संवाद अदायगी और मंचन में थोडा भी इधर-उधर की फिसलन नाटक को विवाद में ले आती लेकिन अतुल सत्य कौशीक ने निर्देशक की डोर बडी मजबूती से पकड रखी है। पात्रो और संवाद को जरा भी इधर-उधर हिलने डूलने का मौका नही दिया है। सुना है,निर्देशक जी चार्टर्ड अकाउंटेंट है,शायद बही खाते का ज्ञान उन्होने यहां सामंजस्य स्थापित करने में बखूबी प्रयोग किया है।

आज कल देश में जैसा वातावरण है,ऐसे में भगवान राम और रावण पर आधारित नाट्य मंचन में सेट डिजाइनर के तौर पर एक मुसलमान का होना और मेघनाथ का पात्र निभाने वाले कलाकार का एक मुस्लिम होना,एक सुखद एहसास करा जाता है। गंगा जमुनी तहजीब का परचम लहराता है। समाज को सकारात्मकता की सीख और समझ दे जाता है।

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