ज्ञानेंद्र मिश्र/स्तंभकार/मुंबई वार्ता
■ ऑपरेशन की पृष्ठभूमि
भारतीय सेना ने अपनी शानदार शौर्य और वीरता का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकवादियों के नौ ठिकानों को नष्ट कर दिया। भारतीय सेना ने अपने शौर्य और साहस से न केवल शत्रु राष्ट्रों की जुबान बंद की, बल्कि भारत के अंदर भी विपक्षी दलों की जुबान पर ताले लगा दिए।कल शाम, विपक्षी दलों की जुबान पर “ऑपरेशन सिंदूर” का नाम आया, लेकिन लगता है कि उन्हें इस नाम से परहेज है। पूरे दिन “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे शब्द से दूरी बनाए रखी। विपक्षी दलों ने “सिंदूर” शब्द में सांप्रदायिकता की बू आ रही थी। धिक्कार है ऐसी कुत्सित मानसिकता पर।

■ विपक्ष की प्रतिक्रिया
पिछले 14 दिनों से विपक्षी दल वर्तमान सरकार को व्यंग्य बाण मारते हुए पाकिस्तान पर आक्रमण की योजना न देखते हुए, सतत् रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कड़े शब्दों में आलोचना कर रहे थे। लेकिन 6 और 7 तारीख के दरमियानी रात भारतीय सेना के औचक प्रहार से घायल पाकिस्तान को देखते हुए मजबूरन विपक्षी दलों को कोप भवन से बाहर आकर सेना की तारीफों के पुल बांधने पड़े- हालांकि इस तरह की बधाइयां देते वक्त विपक्षी दलों खासतौर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग के बाद वक्तव्य के दौरान यदि आप उन सभी का चेहरा देखते, तोपाते कि सभी का सभी चेहरा कत्तई भाव शून्य था।।यदि वे ऐसा नहीं करते, तो संभवतः भारतीय जनमानस आहत भावनाओं में डूबा जिस आक्रोश से गुजर रहा था, विपक्ष को भी भारतीय जनमानस के कोप-भाजन का शिकार होना पड़ता, पाकिस्तान एजेंट होने का ठप्पा लगना भी संभव थाऔर लाजिमी भी हो जाता।
■ ऑपरेशन की सफलता…मगर एक सवाल
एक बात गौर करने योग्य है कि जब आलोचना थी, जब आक्रमण करने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जा रहा था, तो उसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लक्ष्य थे। लेकिन कल के आक्रमण के उपरांत किसी भी विपक्षी दल ने प्रधानमंत्री मोदी को इसका श्रेय नहीं दिया, केवल सेना तक सीमित रखा। इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय सेना को उनके शौर्य और साहस का परिचय देने के लिए हर तरह से बधाई के पात्र हैं, लेकिन इस निर्णय पर पहुंचने के लिए या निर्णय लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी श्रेय के हकदार हैं कि नहीं? *यह दोगलापन समझ में नहीं आया।
■ ऑपरेशन के परिणाम और संभावनाएं
एक सूत्र से यह जानकारी मिली है कि जिन आतंकवादी ठिकानों को, कैंपों को, ट्रेनिंग सेंटर्स को नेस्तनाबूद किया गया, उनमें संभवतः 300 से 500 कम उम्र के बच्चे और जवान आतंक की ट्रेनिंग लिया करते थे। लेकिन कल की प्रहार के बाद जो सूचनाएं आई हैं, उसमें जो हताहतों की संख्या है, वह कुल नौ घटनाओं में मिलाकर 37 से 40 के आसपास आंकी गई है।
■ आखिर यह माजरा क्या है ?
जहां तकरीबन हर ट्रेनिंग सेंटर में 300 से 500 लोग होने चाहिए थे और मारे जाने चाहिए थे, वहां औसतन एक ट्रेनिंग कैंप में केवल चार से पांच लोग मारे गए हैं। यह कैसे संभव है?
इसके दो कारण हो सकते हैं:
1. *खुफिया विफलता*:
भारतीय सेना या इस आक्रमण की योजना बनाने वालों के बीच कोई ना कोई इंटेलिजेंस फैलियर तो हुआ है, जिसने इन योजनाओं को पहले ही पाकिस्तान तक पहुंचा दिया।
2. *पूर्व नियोजित परिणाम*: हालांकि मैं मानने को तैयार नहीं हूं, लेकिन शंका को स्थान मिलता है – क्या किसी स्तर पर ऊंचे स्तर पर यह पहले से तय किया गया कि चूंकि हमारे ऊपर जनता से लेकर विपक्ष का भयानक दबाव है, अतः हमें आपके ठिकानों पर आक्रमण तो करना ही है, और आपस में ही तय करके यह नोट ठिकाने चिन्हित कर दिए गए- जिसके कारण से भारत आबाद रूप से इन ठिकानों पर आक्रमण कर वापस आ सका।। सनद रहे कि ऐसी ही एक घटना, योजनाबद्ध तरीके से ईरान और इजरायल के बीच 6 महीने पहले हो भी चुकी है।।
3. *योजना का हिस्सा* पाकिस्तान को विश्वास में लेकर के किया गया यह आक्रमण- संभवत लाभप्रद दोनों राष्ट्रों के लिए हो सकता है– यदि भारतीय जनता जनमानस और विपक्ष इतने से संतुष्ट हो गया तो सरकार भारत में सामान्य कामकाज की ओर वापस आ सकती है और उधर पाकिस्तान यदि यह कहते हुए की भारतीय सेवा ने आतंकवादी कैंपों पर ही आक्रमण किया है किसी तरह का विरोध नहीं करता रीटेलिएटरी आक्रमण नहीं करता है तो भी ठीक और यदि पाकिस्तान सुना किसी भी दबाव में किसी भी कारण से आक्रमण कर भी देती है तो भारत सरकार के पास भारतीय सेवा के पास वाजिब कारण होगा पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों, रणनीतिक स्थानों पर बमबारी करने के, नेस्तनाबूत करने के लिए।। *यहां हर परिस्थितियों में विजय भारत की ही होती है।।
● आगे की रणनीति
आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिए, जैसा कि मैं पहले भी अपने लिखे में कहा है, आतंकवादियों को मारने का कोई अर्थ नहीं है, एक मारेंगे तो 10 आएंगे मरने के लिए, क्योंकि उन सभी को जन्नत जाना है और 72 हूरों के साथ आनंद प्राप्त करना है। जब तक आतंकियों के हैंडलर्स, सेना और आईएसआई के लोग नहीं मारे जाएंगे, तब तक उन्हें इस बात का एहसास नहीं होगा कि भारत के खिलाफ आतंकी घटनाओं के कारण सेना के लोग मारे जा रहे हैं।
● नई रणनीति की आवश्यकता
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमें अपनी रणनीति में बदलाव लाने की आवश्यकता है। हमें आतंकवादियों के पीछे के मास्टरमाइंड और हैंडलर्स को निशाना बनाने की आवश्यकता है, न कि केवल आतंकवादियों को मारने की। इसके लिए हमें अपनी खुफिया एजेंसियों को मजबूत करने और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।
● आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सफलता के लिए
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सफलता प्राप्त करने के लिए, हमें निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:
1. *आतंकवादियों के हैंडलर्स को निशाना बनाना*: हमें आतंकवादियों के पीछे के मास्टरमाइंड और हैंडलर्स को निशाना बनाने की आवश्यकता है, न कि केवल आतंकवादियों को मारने की।
2. *खुफिया एजेंसियों को मजबूत करना*: हमें अपनी खुफिया एजेंसियों को मजबूत करने और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है, ताकि हम आतंकवादी घटनाओं को पहले ही रोक सकें।
3. *अंतर्राष्ट्रीय सहयोग*: हमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है, ताकि हम आतंकवादियों को वैश्विक स्तर पर रोक सकें।
4. आतंकवाद के मूल कारणों को दूर करना*: हमें आतंकवाद के मूल कारणों को दूर करने की आवश्यकता है, जैसे कि गरीबी, बेरोजगारी मगर सबसे आवश्यक है मुसलमान के वर्तमान परंपरागत शिक्षा के मूलभूत ढांचे-मदरसों- को खत्म कर आधुनिक शिक्षा से जोड़ देना होगा।
■ निष्कर्ष
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमें अपनी रणनीति में बदलाव लाने की आवश्यकता है। हमें आतंकवादियों के पीछे के मास्टरमाइंड और हैंडलर्स को निशाना बनाने की आवश्यकता है, न कि केवल आतंकवादियों को मारने की। इसके लिए हमें अपनी खुफिया एजेंसियों को मजबूत करने और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। हमें आतंकवाद के मूल कारणों, विशेष तौर मदरसों की शिक्षा को भंग कर आधुनिक शिक्षा से बदलाव करने की भी आवश्यकता है, ताकि लोग आतंकवाद की ओर न आकर्षित हों।