मुंबई वार्ता/सतीश सोनी

उच्च न्यायालय ने ११९.९१ हेक्टेयर भूमि की ‘संरक्षित वन भूमि’ की स्थिति को बरकरार रखते हुए कहा कि कांजूर डंपिंग ग्राउंड की भूमि ‘संरक्षित वन भूमि’ है और राज्य सरकार द्वारा इसे डंपिंग ग्राउंड के लिए उपयोग करने की अनुमति देने का निर्णय अवैध है, तथा मुंबई नगर निगम को तीन महीने के भीतर संबंधित भूमि को बहाल करने का निर्देश दिया।


इस निर्देश ने मुंबई नगर निगम के सामने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि पूरे शहर के कचरे का निपटान कैसे किया जाए ? चिंचोली बंदरगाह के पास डंपिंग ग्राउंड के विरोध के बाद कंजूर डंपिंग ग्राउंड बनाया गया। इसके लिए सरकार ने ठाणे क्रीक के पास कुल 434 हेक्टेयर ‘संरक्षित वन भूमि’ घोषित करने वाली अधिसूचना में शुद्धिपत्र जारी करते हुए कहा कि 119.91 हेक्टेयर भूमि को गलती से ‘संरक्षित वन भूमि’ क्षेत्र में शामिल कर लिया गया था। डम्पिंग ग्राउंड के लिए संबंधित भूमि अधिग्रहण हेतु पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) से अनुमति प्राप्त कर ली गई है। राज्य सरकार द्वारा भूमि को डंपिंग ग्राउंड के रूप में उपयोग करने के निर्णय को एनजीओ वनशक्ति द्वारा 2013 में उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। 11 वर्षों के बाद न्याय हुआ।
गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति. अद्वैत सेठना की पीठ ने याचिका का निपटारा कर दिया।
मुंबई नगर निगम आयुक्त भूषण गगरानी ने शुक्रवार को कहा कि कंजूर डंपिंग ग्राउंड के संबंध में उच्च न्यायालय के आदेश को मुंबई नगर निगम सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देगा। इसलिए पर्यावरणवादियों को संघर्ष जारी रखना होगा।पिछले १५ वर्षों से वनशक्ति और विक्रोलीकर विकास मंच कंजूर डंपिंग के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। डंपिंग ग्राउंड स्थापित करते समय केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को अंधेरे में रखते हुए वन भूमि पर डंपिंग ग्राउंड स्थापित करने का मुद्दा उठाया गया। इस मुद्दे से संबंधित दस्तावेज अदालत में पेश किये गये। तब से लेकर अब तक अदालत में कई सुनवाइयां हो चुकी हैं।
शुक्रवार को आया पहला निर्णय पर्यावरणवादियों की जीत है।जिस क्षेत्र में यह डंपिंग हो रही है वह वन भूमि है। नगरपालिका के पास तीन महीने के भीतर इस स्थल को नियमित करने का विकल्प है। सफल होने पर, उसी स्थान पर डम्पिंग जारी रखी जा सकती है।
‘वनशक्ति’ के दयानंद स्टालिन ने दावा किया कि हालांकि यह विकल्प नगरपालिका के पास उपलब्ध है, लेकिन यह आसान काम नहीं है।उच्च न्यायालय के आदेश में इस तथ्य को उजागर किया गया कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने इस संबंध में जानकारी देते समय सर्वोच्च न्यायालय को अंधेरे में रखा। उन्होंने कहा, इसलिए हमारा मानना है कि नगर पालिका सुप्रीम कोर्ट का सामना नहीं कर पाएगी।