मुंबई वार्ता / भरत कुमार सोलंकी
विकसित देशों की जीवनशैली और हमारे देश की जल संरक्षण नीति के बीच का विरोधाभास हर बार मेरी ऐप्पल वॉच की चेतावनी से उजागर होता हैं। यह मुझे लगातार याद दिलाती हैं कि मुझे हाथ धोते समय पूरे 20 सेकंड तक पानी का उपयोग करना चाहिए। वहीं, हमारे देश में पानी बचाने की सलाह दी जाती हैं और हर गर्मी में कई राज्यों में जल संकट की खबरें सुर्खियाँ बनती हैं।
जब कोरोना महामारी के दौरान बार-बार हाथ धोने पर जोर दिया गया, तब भी सवाल उठा कि क्या भारत की जल वितरण व्यवस्था इतनी सक्षम हैं कि 140 करोड़ लोगों के लिए यह आदत व्यवहारिक हो सके?विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 20 सेकंड तक हाथ धोने की सिफारिश की हैं,?जो विकसित देशों में सहज रूप से अपनाई जाती हैं क्योंकि वहाँ जल वितरण प्रणाली मजबूत हैं।
अमेरिका, कनाडा, यूरोप और अन्य समृद्ध देशों में पानी का उपयोग भरपूर किया जाता हैं क्योंकि वहाँ जल संरक्षण और आपूर्ति की ठोस व्यवस्थाएँ हैं। लेकिन भारत में, जहाँ नदियाँ सदियों से हमारी सभ्यता का आधार रही हैं, जल संकट क्यों बना रहता है? जब सरकार महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान की व्यवस्था कर सकती हैं, तो क्या रोजमर्रा के जीवन में स्वच्छता बनाए रखने के लिए जल प्रबंधन को उतनी ही प्राथमिकता नहीं मिलनी चाहिए?
सवाल यह हैं कि यदि हर भारतीय रोज़ाना 20 सेकंड तक हाथ धोने के लिए पानी बहाए, तो कितना पानी लगेगा? औसतन, एक व्यक्ति 20 सेकंड में लगभग 2 लीटर पानी खर्च करता हैं। यदि 140 करोड़ लोग यह आदत अपनाएँ, तो प्रतिदिन 280 करोड़ लीटर पानी सिर्फ हाथ धोने में खर्च होगा। क्या हमारी जल प्रबंधन नीति इस अतिरिक्त भार को वहन करने के लिए तैयार है? अगर नहीं, तो क्यों? क्या यह हमारी प्राथमिकताओं की कमी को दर्शाता हैं?कुदरत हमें भी उतना ही पानी देती हैं जितना विकसित देशों को, फिर भी जल संकट क्यों? इसका मुख्य कारण जल संरक्षण में लापरवाही और दीर्घकालिक योजना का अभाव हैं।
विकसित देशों ने जल संचयन के लिए विशाल बाँधों और जल पुनर्चक्रण तकनीकों को अपनाया हैं, जबकि भारत में ऐसे प्रयास धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं। यदि सरकार महाकुंभ जैसे आयोजनों में करोड़ों श्रद्धालुओं को स्नान की सुविधा दे सकती हैं, तो क्या वह पूरे देश के लिए जल प्रबंधन की ऐसी व्यवस्था नहीं कर सकती कि हर व्यक्ति को पर्याप्त पानी मिले, न केवल पीने के लिए बल्कि स्वच्छता और कृषि जैसे बुनियादी कार्यों के लिए भी?
देश का विकास जल प्रबंधन के बिना संभव नहीं हैं, विशेष रूप से भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए, जहाँ सिंचाई की व्यवस्था असमान हैं।जब तक जल संरक्षण और वितरण को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक विकास अधूरा रहेगा। हमें सोचना होगा कि हम महाकुंभ के स्नान प्रबंधन से जो सीखते हैं, उसे नियमित जीवन में लागू करने के लिए क्या तैयार हैं? अगर करोड़ों लोगों के स्नान की योजना बनाई जा सकती हैं, तो क्या 140 करोड़ लोगों के लिए स्वच्छता और जल आपूर्ति की प्रभावी व्यवस्था नहीं की जा सकती? प्रशासन को इन सवालों का जवाब देना होगा, क्योंकि जल ही जीवन हैं और जल प्रबंधन ही भारत के भविष्य की कुंजी हैं।