● राज्य में मोदीजी के नेतृत्व में बनेगी एनडीए की राष्ट्रवादी सरकार।
मुंबई वार्ता संवाददाता

प्रसिद्ध हिंदूवादी वरिष्ठ भाजपा नेता और मुंबई के पूर्व उप महापौर बाबूभाई भवानजी ने कहा है कि तमिलनाडु की जनता बदलाव चाहती है और वहां मोदीजी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनना तय है।


तमिलनाडु के दौरे से लौटे भवानजी ने बताया कि उन्होंने तमिलनाडु के सभी भागों का भ्रमण किया और पाया कि राज्य की जनता स्टालिन सरकार के भ्रष्टाचार और परिवारवाद से ऊब चुकी है। राज्य के लोग बीजेपी और एआईएडीएमके के गठबंधन को सत्ता सौंपने का मन बना चुके हैं।
उन्होंने बताया कि तमिलनाडु के लोगों को स्टालिन का संकीर्ण भाषावाद पसंद नहीं आ रहा है और लोगों का मानना है कि स्टालिन की छोटी सोच से राज्य के लोगों का विकास अवरुद्ध हो रहा है।
बता दें कि भवानजी देशभर में हिंदुत्व को मजबूत करने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने का अभियान चला रहे हैं। इस कड़ी में उन्होंने अपनी खुद की नातिन को एक तमिल भाषी युवक से शादी करने की इजाजत दी है। इस प्रकार उन्होंने भाषाई विविधता का सम्मान करके सभी संकीर्ण विचारधारा के लोगों के समक्ष एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
बता दें कि तमिलनाडु की राजनीति में एक बार फिर दिलचस्प मोड़ आया है। लगभग दो साल की कड़वी जुदाई के बाद बीजेपी और एआईएडीएमके (AIADMK) की फिर से जोड़ी बनना केवल चुनावी गणित नहीं, बल्कि तमिलनाडु की राजनीतिक दिशा को बदलने की कोशिश मानी जा रही है। अब चर्चा यही हो रही है कि क्या ‘दो पत्तियों’ (AIADMK के चुनाव चिह्न) के साथ साथ बीजेपी का ‘कमल’ तमिल भूमि पर खिल सकेगा ?
एक रिपोर्ट के मुताबिक AIADMK और बीजेपी के नेताओं की मानें तो उनका गठबंधन एक ‘अजेय गठजोड़’ के रूप में सामने आएगा। भाजपा के प्रदेश महासचिव एपी मुरुगानंदम के अनुसार, ‘बीजेपी का 18% और AIADMK का 25% वोट शेयर अपने आप 43% तक पहुंचता है। इसमें अगर 7-8% एंटी-DMK वोट जुड़ जाएं, तो ये गठबंधन स्पष्ट रूप से विजयी हो सकता है।’वहीं AIADMK के थाचाई गणेसराजा ने भी गठबंधन के पास 40% वोट होने का दावा किया है।
उनका कहना है,’अब बीजेपी के पास 10 से 12% वोट है,AIADMK के पास 25%. और 7-8% एंटी-डीएमके वोट होंगे। यह 40% वोट हो जाता है। इससे हम चुनाव जीत जाएंगे।’**वैसे दोनों दलों के नेताओं के सुर इस बार संयमित हैं। मतभेदों के बाद बनी यह सहमति एक रणनीतिक कदम तो है, लेकिन इसमें सियासी मजबूरियां भी छिपी हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने दम पर दोनों पार्टियों का प्रदर्शन खास नहीं रहा था। इसलिए, सत्ता में वापसी के लिए मिलकर चलने का मंत्र अपनाया गया है। मगर क्या यह रास्ता वास्तव में दोनों के लिए ‘विजयपथ’ बन पाएगा?गठबंधन भले ही आंकड़ों में मजबूत दिख रहा हो, लेकिन मतदाता का मन अभी नहीं पढ़ा जा सकता। एआईएडीएमके की एक बड़ी चिंता अल्पसंख्यक मतदाताओं का संभावित मोहभंग होना है, जिन्हें बीजेपी के साथ गठबंधन शायद ही रास आ पाए।
कई कार्यकर्ता भी मानते हैं कि गठबंधन ने पार्टी की स्वतंत्र छवि को धूमिल किया है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘बीजेपी के साथ गठबंधन ने अल्पसंख्यकों के बीच हमारी विश्वसनीयता को कमजोर किया है।’लेकिन, बीजेपी के लिए यह गठबंधन एक ‘रणनीतिक कामयाबी’ लग रहा है। खासकर के इसलिए क्योंकि तमिलनाडु में बीजेपी लंबे समय से खुद को स्थापित करने की कोशिशों में जुटी हुई है, लेकिन अभी तक अपेक्षित कामयाबी मिलना बाकी है। AIADMK के साथ जुड़ाव से उसे एक विश्वसनीय मंच और स्थानीय समर्थन मिल सकता है।
एनडीए की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि वे क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को कैसे साधते हैं। एआईएडीएमके के पश्चिमी क्षेत्र के गौंडर नेताओं से उम्मीद है कि वे अपने समुदाय के वोट जुटाएंगे। दक्षिणी क्षेत्र में थेवर समुदाय को लुभाने के लिए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अन्नामलाई की जगह नैनार नागेंद्रन को बिठाया गया है। अगर पीएमके जैसे दल साथ आ जाते हैं, तो यह गठबंधन उत्तर तमिलनाडु में भी अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है।
बीजेपी नेता अमित शाह ने इस गठबंधन को स्वाभाविक बताया है, लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही बयां करती हैं। दोनों दलों के जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल की अभी कमी दिखती है। पिछले कुछ वर्षों से एक-दूसरे की कड़ी आलोचना करने वाले नेता और कार्यकर्ता अब कैसे साथ काम करेंगे, यह देखने वाली बात होगी।
AIADMK के एक पूर्व विधायक का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी (EPS) ने समझौते की शर्तें तय की हैं। बीजेपी को एक ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ के लिए तैयार होना पड़ा है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों पर बीजेपी अपनी सीमा न लांघे। इससे लगता है कि AIADMK अब भी अपनी वैचारिक पहचान को बचाने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यदि यह गठबंधन एकजुट होकर चुनाव लड़ता है, तो सत्ताधारी DMK के लिए यह एक गंभीर चुनौती हो सकता है। 2024 में विपक्ष के वोटों का बंटवारा DMK और उसके गठबंधन की जीत का कारण बना था। अब अगर विपक्ष एकजुट हो जाता है, तो उसके हक में 200 सीटों तक का दावा किया जा रहा है।
वैसे यह बात भी सच है कि DMK भी इस गठबंधन को हल्के में नहीं ले रही। पार्टी नेता और सांसद कनिमोझी के बयान से स्पष्ट है कि एमके स्टालिन की पार्टी सतर्क हो चुकी है। लेकिन 2026 का चुनाव आने तक यह सियासी तस्वीर कैसी होगी, यह कहना अभी के लिए बहुत बड़ा सवाल है।