नाम की पहचान: समानता का सवाल और समाधान—अर्थशिल्पी भरतकुमार सोलंकी

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मुंबई वार्ता संवाददाता

क्या आपने कभी सोचा हैं कि आपके नाम की पहचान कितनी महत्वपूर्ण है? आज के डिजिटल युग में नाम की समानता एक बड़ा मुद्दा बन गया हैं। राजस्थान और उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में तो यह समस्या और भी गंभीर हो जाती हैं।

क्या आपके सभी दस्तावेज़ों में नाम एक जैसा है? पैन कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट, बिजली बिल, बर्थ सर्टिफिकेट और जमीन-जायदाद के रिकॉर्ड में क्या आपका नाम एक जैसा दर्ज है? अगर नहीं, तो यह आपके वारिशदारो के लिए परेशानी का कारण बन सकता हैं।

सोचिए, जब किसी व्यक्ति के पास बर्थ सर्टिफिकेट में कुछ और नाम हो, पैन कार्ड पर कुछ और और नेमप्लेट पर कुछ और लिखा हो, तो क्या यह उसकी पहचान को भ्रमित नहीं करता? हाल ही में एक घटना में, एक बेटे को अपने पिता के निधन के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र पर सही नाम लिखवाने के लिए बीमा एजेंट से पूछना पड़ा कि मेरे पिता का नाम क्या हैं? यह तब हुआ जब पिता ने अपने अलग-अलग दस्तावेज़ों में नाम अलग-अलग तरीके से लिखवाया था।इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है? सरकार ने पैन कार्ड फॉर्म में फर्स्ट नेम, मिडिल नेम और लास्ट नेम का स्पष्ट ढांचा दिया हैं, लेकिन क्या जनता तक यह जानकारी पहुंच पाई है? क्या स्कूलों और पंचायत स्तर पर इस विषय में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं?

नाम की समानता की यह समस्या सिर्फ दस्तावेज़ों तक सीमित नहीं हैं। घर की नेमप्लेट से लेकर म्युनिसिपल प्रॉपर्टी कार्ड, ग्राम पंचायत रिकॉर्ड, बिजली बिल, और यहां तक कि मोबाइल कनेक्शन के बिल तक, हर जगह एक जैसा नाम होना जरूरी हैं। जब यह समानता नहीं होती, तो केवाईसी प्रक्रिया में दिक्कतें आती हैं, और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में बाधा पहुंचती हैं।

आज यह सवाल उठाना जरूरी हैं कि सरकार क्यों नहीं इस दिशा में एक राष्ट्रीय अभियान चलाती? क्यों न एक केंद्रीकृत प्रणाली बनाई जाए जहां हर व्यक्ति अपने दस्तावेज़ों को एकसमान बना सके? और क्या समाज इस समस्या की गंभीरता को समझ पा रहा है?“नाम चाहे कागजों में हो या घर की दीवारों पर, उसकी पहचान सटीक होनी चाहिए।” यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी भी है। सरकार, समाज और हर नागरिक को इस विषय में मिलकर काम करना होगा ताकि यह समस्या जड़ों से खत्म हो सके।(सार्वजनिक जागरूकता अभियान के तहत प्रकाशित)

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