■ हनुमत-शनि मंदिरों में मनेगी शनिदेव की जयंती
■ बड़े मंगल पर महिलाएं करेंगी वट सावित्री का व्रत
● 5 शुभ संयोगों में पितृ, हनुमान, शनि और वट पूजा
वरिष्ठ संवाददाता/मुंबई वार्ता

सनातन हिंदू धर्म में ज्येष्ठ माह और उसकी अमावस्या का अत्यंत खास महत्व होता है। इस दिन जहां कर्मफल तथा न्याय दाता सूर्यपुत्र शनिदेव की जयंती मनाई जाती है तो महिलाएं अपने अक्षुण्ण सौभाग्य के लिए व्रत रखते हुए वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इसके साथ ही ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर पितृदोष से मुक्ति तथा पितरों की संतुष्टि के लिए तर्पण, तिलांजलि, पवित्र नदी स्नान, दानादि कर्म किए जाते हैं।


इस वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या मंगलवार 27 मई को पड़ रही है जिससे यह दिन बेहद खास होने वाला है। 27 मई को मंगलवार होने से जहां इस अमावस्या को भौमवती नाम मिल रहा है वहीं यह ज्येष्ठ माह का तीसरा बड़ा मंगलवार भी है। इस दिन सभी हनुमान एवं शनि मंदिरों में जहां शनि जयंती पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी तो सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष (बरगद) की पूजा करेंगी।
भृगु संहिता आचार्य पंडित राम प्रसाद मिश्र ‘ज्योतिषी’ ने बताया कि इस वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या पर 27 मई को 5 अद्भुत एवं शुभ संयोग बन रहे हैं, जो श्रद्धालुओं को 5 प्रकार के शुभ फल प्रदान करेंगे। ज्येष्ठ माह की अमावस्या शनि देव, वीर हनुमान और पितरों की पूजा के लिए सबसे बड़ा पर्व है। ज्येष्ठ अमावस्या मंगलवार के दिन होने से भौमवती अमावस्या हो गई। इस दिन मंगल दोष की शांति की जा सकती है। बड़ा मंगलवार, शनि जयंती पर सर्वार्थ सिद्धि का योग भी बन रहा है। सुकर्मा योग 27 मई की रात 10:54 बजे तक है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5:25 बजे से 5:32 बजे तक (बहुत ही दुर्लभ), शिव वास योग सुबह 8:31 बजे तक रहेगा। इस योग में भगवान शिव कैलाश पर विराजते हैं।
ज्येष्ठ अमावस्या का गोचर काल पंडित रामप्रसाद मिश्र के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या की शुरुआत सोमवार 26 मई को दोपहर बाद 12:11 बजे से होगी। इसका समापन मंगलवार 27 मई को सुबह 8:31 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या 27 मई को है। ज्येष्ठ अमावस्या पर भौमवती अमावस्या, तीसरा बड़ा मंगल या बुढ़वा मंगल, शनि जयंती के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। शनिदेव को न्यायाधीश कहा जाता है, क्योंकि वे हर व्यक्ति को कर्म के आधार पर फल प्रदान करते है। रंक को राजा और राजा को वे रंक बनाकर छोड़ते हैं।
शनि की साढ़ेसाती, मंगल दोष, अन्य ग्रहों की पीड़ा तथा पनौती से परेशान लोग शनिदेव की जयंती का साल भर इंतजार करते हैं। शुभ संयोग में शनि जयंतीपंचांग के अनुसार इस बार शनि जयंती और खास होने वाली है, क्योंकि शनि जयंती पर इस वर्ष कृतिका और रोहिणी नक्षत्र के साथ सुकर्मा योग बन रहा है। इस दिन शनि देव की पूजा करने से साढ़ेसाती और शनि देव की सभी पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है। वर्तमान में कुंभ, मीन, मेष, सिंह और धनु राशियां शनिदेव की पीड़ा का शिकार हैं।
भगवान शिव की कठोर तपस्या के बाद शनि देव को नक्षत्र मंडल में स्थान मिला। शिव जी की कृपा से ही वे न्याय के देवता कहलाए। सत्यवान और सावित्री से जुड़ा है वट वृक्ष भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के रिश्ते को बेहद पवित्र और अटूट माना गया है। इस रिश्ते की लंबी उम्र और मजबूती के लिए महिलाएं कई व्रत-त्योहार करती हैं, जिनमें वट सावित्री व्रत का स्थान बहुत ऊंचा है।
इस दिन महिलाएं माता सावित्री की पूजा करती हैं, जिन्होंने अपने तप और संकल्प से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले लिए थे। वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या पर रखा जाता है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत करती हैं।