मुंबई वार्ता संवाददाता

महाराष्ट्र दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री ने विभिन्न विभागों के 100 दिनों के कामकाज की समीक्षा करते हुए “प्रगति पुस्तिका” का विमोचन किया। महिला एवं बाल विकास विभाग ने 80% अंकों के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया। प्रशासन की ओर से यह सुनना निश्चित रूप से सुखद हो सकता है, लेकिन इसके पीछे की वास्तविकता जनता को क्या बताती है? इस प्रकार का सवाल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) नेता अमोल मातेले ने उठाया है।
उन्होंने कहा कि एक ओर देश के गृहमंत्री रायगढ़ दौरे पर आते हैं और उनके खानपान की व्यवस्था सीधे महिला एवं बाल विकास विभाग के एक अधिकारी के घर पर बड़े धूमधाम से की जाती है। हेलीपैड पर डेढ़ से दो करोड़ रुपए खर्च होते हैं, क्या यह सब आम जनता की नजरों में आए बिना हो सकता है?
अमोल मातेले ने कहा कि किसान कर्जमाफी के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं, रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मामूली वेतन पर काम कर रही हैं, ऐसे में क्या किसी विभाग का ‘नंबर वन’ होना, लोगों के जख्मों पर नमक नहीं छिड़क रहा है?
उन्होंने कहा कि सराहनीय प्रगति या ‘उत्सव’ की लागत और लाभ पर एक वस्तुनिष्ठ रिपोर्ट जनता को कब दिखाई जाएगी ? यदि महिला एवं बाल विकास विभाग ने सचमुच उल्लेखनीय परिणाम हासिल किए हैं, तो यह गांव स्तर पर दिखाई देना चाहिए और लाभार्थियों के चेहरों पर संतुष्टि दिखनी चाहिए। लेकिन अब हम जो देख रहे हैं वह है मंत्रियों का स्वागत, हेलीपैड पर खर्च, तथा ‘गुणों’ का गुणगान – जो शायद केवल कागजों पर ही प्रगति दर्शाता है। इसलिए, सवाल उठता है – क्या यह वास्तव में एक “प्रगति पुस्तक” है या एक “प्रचार पुस्तिका” है?