■ हिंदू विधिज्ञ परिषद ने महाराष्ट्र शासन से की शिकायत
■पूछा- वक्फ और मंदिरों के लिए अलग-अलग कानून क्यों
वरिष्ठ संवाददाता /मुंबई वार्ता

धार्मिक स्थलों के संबंध में बने नियमों में भेदभाव का आरोप लगाते हुए हिंदू विधिज्ञ परिषद ने महाराष्ट्र शासन को पत्र लिखकर इसे समाप्त करने की मांग की है।
परिषद के अध्यक्ष एड वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने बताया कि हमने पत्र में लिखा है कि वक्फ बोर्ड में पंजीकृत वक्फ की इमारतों पर हुए अतिक्रमण हटाने के लिए शासकीय यंत्रणा का उपयोग करने की अनुमति तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दी थी। इसके लिए वर्ष 2008 में महाराष्ट्र शासकीय इमारत अधिनियम, 1956 में संशोधन किया गया। मंदिर और वक्फ दोनों धार्मिक स्थान होते हुए भी वक्फ बोर्ड की भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए सरकारी यंत्रणा (पुलिस सुरक्षा) दी जाती है, परंतु मंदिरों पर हुए अतिक्रमण हटाने के लिए ट्रस्टियों को न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है। इस प्रकार मंदिर और वक्फ बोर्ड के लिए अलग-अलग कानून है जो भेदभावपूर्ण है। साथ ही यह संविधान के विरोध में है।


इचलकरंजीकर के अनुसार शासन द्वारा जो लाभ वक्फ बोर्ड को दिया जाता है, वही लाभ मंदिरों को भी दिया जाए, अन्यथा मंदिरों की तरह वक्फ बोर्ड को दिया गया विशेष लाभ बंद किया जाए। वक्फ को यदि अपनी संपत्ति किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग करनी हो, तो उसे दीवानी न्यायालय जाने की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें शासन को शिकायत देनी होती है और उस शिकायत पर शासकीय यंत्रणा कार्रवाई करती है। वक्फ का किराया बकाया हो, तो वह भी भूमि राजस्व की तरह वसूल किया जाता है।
सरकारी भूमि के समान वक्फ की भूमि के लिए जो सुविधा सरकार ने लागू की, वैसी सुविधा सरकार ने मंदिरों को नहीं दी। धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में पंजीकृत मंदिरों की भूमि पर यदि किसी ने अतिक्रमण किया, तो मंदिर के ट्रस्टी को अपनी भूमि वापस प्राप्त करने के लिए शासन के पास नहीं, बल्कि न्यायालय में जाना पड़ता है। हिंदू विधिज्ञ परिषद की मांग है कि इस अधिनियम की धारा 2 में वक्फ की तरह मंदिरों की भूमि और इमारतों को शामिल किया जाए या फिर वक्फ को इससे बाहर किया जाए।