डाॅ धीरज फूलमती सिंह /स्तंभकार-मुंबई वार्ता

“पुराने जमाने में किसी पाप के लिए लोग स्वय को सजा देते थे,खुद को टॉर्चर कैसे किया जाता है अगर यह जानने की उतावलापन हो तो एक बार सलमान खान की फिल्म “सिकंदर” देख लिजिए,पता चल जाएगा! न कहानी,न किरदार,न अदाकारी,न ही निर्देशन, न स्क्रीन प्ले बस कुछ ठीक है तो मारधाड के दृश्य पर इस में सलमान खान हांफते नजर आते है।


अब सलमान खान को स्वीकार कर लेना चाहिए कि वे बुढा गये है और उनका मोटा हुआ शरीर साथ नही दे रहा है। चेहरे की झूर्रिया छूपाने के लिए चेहरे पर दाढी थोप दी गई है। देखा जाये तो सिकंदर की कहानी राजकोट के राजा यानी संजय की है। वो अपनी पत्नी रश्मिका मंदाना से बहुत प्रेम करते हैं,लेकिन काम में कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहते हैं,फिल्म में राजा साहब काम क्या करते है,वह जानने की कोशिश भी मत कीजिएगा, पाप लगेगा। यह अलग बात है कि उनकी पत्नी यानी रानी उनकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहती है।


सिकंदर की ढाल बनी रानी के साथ कुछ ऐसा होता है कि राजा से उसका साथ छूट जाता है, फिर टूटा हुआ राजा अपनी जिदंगी की कड़ियों को जोड़ने की कोशिश करता है,बस यही इतनी सी सिकंदर की कहानी है।
लगता है,फिल्म के निर्देशक मुरूगादास को नायक और नायिका को फिल्म में अलग कर बिछडवा देने में मजा आता है ? इसके पहले उन्होने गजनी में भी यही किया था और सिकंदर में भी ऐसा ही कुछ करते नजर आ रहे है। फिल्म की कहानी हवाई जहाज में मार-पीट से शुरू होती है और अंत दर्शकों द्वारा खुद की सिर धुनाई और बाल नोचाई पर खत्म होती है। फिल्म खत्म होने पर दर्शक सोचता है कि “हम से का भूल हुई जो यह फिल्म हमने देखी!”
सिकंदर में रशमिका मंदाना जैसी खूबसूरत और अच्छी अभिनेत्री को पूरी तरह से जाया किया गया है,प्रतीक बब्बर को जबरदस्ती ठूंसा गया है और शरमन जोशी जैसा अभिनेता इस फिल्म में कर क्या रहा है,मुझे तो समझ में ही नही आया! कही कुछ थोडा बहुत कोई दिखा भी है तो इस फिल्म का खलनायक पर वह भी कहानी में बस खाना पूर्ति के लिए ही रखे गए है।
फिल्म का नायक राजा तो कही से नही लगता है लेकिन सडक छाप मवाली जरूर लगता है। यह वही सलमान खान है जिनकी फिल्म का दर्शक साल भर इंतजार करते है,कभी वे हिट फिल्म की गारंटी होते थे! अब एक हिट के लिए तरस रहे है,अब तो वे एक भयानक सपना सा हो गये है। कम बैक का तरीका कैसा होना चाहिए, उसके लिए सलमान खान को शाहरुख खान से ट्यूशन जरूर लेनी चाहिए लेकिन ट्यूशन लेने से पहले सलमान खान को अदाकारी की ट्रेनिंग भी ले लेनी चाहिए। कब तक स्टार डम का बोझ अपने बूढे हो चुके कंधो पर लेकर घुमेगे और दर्शको को मुर्ख बनाते रहेंगे ?
सलमान खान की फिल्म किक का एक संवाद है,मेरे बारे में इतना मत सोचना,मैं दिल में आता हूँ,समझ में नही अगर इस हिसाब से कहूं तो सिकंदर एक ऐसी फिल्म है जो न दिल में आती है,न दिमाग में और समझ में तो बिल्कुल भी नही आती! सिनेमा घरों में सिकंदर फिल्म की भद्द पिटने के बाद सन्नी देवल की फिल्म “जाट” भी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। भारत की यह शायद इकलौती हिन्दी फिल्म है जो पूरी तरह से सज-धज कर दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के ताने बाने में पेश की गई है। फिल्म की आवाज अगर म्यूट कर दीं जाये तो शायद ही यह कोई बता पायेगा कि यह एक हिन्दी फिल्म है,उल्टा दर्शक आश्चर्य करेगा कि बॉलीवुड अभिनेता सन्नी देओल ने एक दक्षिण भारतीय फिल्म में काम क्यों किया ? यह ढाई किलो का हाथ जब उठता है ना तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है।’, 32 साल पहले फिल्म ‘दामिनी’ में सनी देओल ने अपने ढाई किलो के हाथ की ताकत दिखाकर बॉलीवुड के दर्शकों का दिल लूट लिया था।
अब बॉलीवुड के ओरिजिनल एक्शन स्टार 67 साल की उम्र में ‘जाट’ बनकर वही दमखम दिखाने साउथ के मैदान में उतरे हैं। खास बात यह है कि चेहरे और त्वचा पर इस बढ़ती हुई उम्र का असर साफ-साफ दिखने के बावजूद, सन्नी देओल अपने स्वैग,स्टाइल और एक्शन से,आज भी इस बात का भरोसा दिलाने में कामयाब होते हैं कि उनका यह ढाई किलो का हाथ दर्जनों गुंडों को अकेले ही पीट-पीट कर भूसा भर सकता है।
जब सन्नी देओल फिल्म में चलती जीप रोक लेते है और बडा सा पंखा तोड़कर गुडों की धुलाई करते है तो दिल मानने को तैयार हो जाता है कि सन्नी देओल है तो ऐसा करना संभव है। यही भरोसा सलमान खान की सिकंदर में नायक के लिए नही जागता है। फिल्म के दृश्य में जब भी सन्नी देओल गुण्डो से साॅरी बोलने को कहते है तो दर्शकों की बरबस हंसी छूट जाती है कि “अब तो गुण्डो की धुलाई बडे मजेदार ढंग से होगी और इसी के साथ दर्शक कुर्सी की पेटी बांध गुण्डो की पिटाई का मजा लेने लगता है।”
साउथ इंडियन डायरेक्टर गोपीचंद मलिनेनी की ‘जाट’ देसी एक्शन सिनेमा का धमाकेदार कमबैक है। फिल्म में दमदार डायलॉग्स, जबरदस्त एक्शन और पावरफुल परफॉर्मेंस का पूरा तड़का है। रणदीप हुड्डा, विनीत कुमार सिंह, रेजिना कैसेंड्रा और सैयामी खेर की एक्टिंग भी कमाल की है। इसमें रणदीप हुड्डा ने अपने किरदार में जान डाल दी है। एक दृश्य में वे रावण की पूजा करते हुए रावण में आत्मसात होते चले गए है,यह दृश्य देखते ही बनता है। श्रीलंकाई आतंकवादी के रूप में रणदीप हुड्डा भारत में घुसकर आंध्र प्रदेश के कई गांवों में एक शातिर गिरोह का नेता बन जाता है। खलनायक द्वारा फिल्म में लोगो के गर्दन काटने वाले वीभत्स दृश्य दिल में सिहरन पैदा करते है। रणदीप हुड्डा को संवाद कम मिले हैं, लेकिन अपने लुक, बीड़ी पीने के अंदाज, शर्ट की बांह को मोड़ना और बॉडी लैंग्वेज से ही वे खौफ पैदा कर देते हैं।
इंटरवल तक फिल्म बिना कहानी के दिल बहलाती है। सनी देओल के कैरेक्टर के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है और जब बताया जाता है तो दर्शको की रूचि जाती रहती है।”जाट’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि अच्छाई बनाम बुराई की स्टाइलिश लड़ाई है जो थियेटर में दर्शको को सीटियां बजाने पर मजबूर कर देती है।
सिकंदर और जाट दोनो फिल्मों के निर्देशक दक्षिण भारतीय है,शायद यह इशारा है कि बॉलीवुड इंडस्ट्री अब दक्षिण भारत पर निर्भर होने जा रही है ? वो कहते है ना,सफर का आनंद लेना है तो बोझ कम रखो वैसे ही जाट फिल्म का मजा लेना है तो लाॅजिक घर छोड आओ! हाँ फिर भी मैं इतना तो जरूर कहूंगा कि “जाट” एक फूल टू पैसा वसूल मूवी है।