GST: जब टैक्स का खेल गुड्स और सर्विस में बंट जाता हैं!—अर्थशिल्पी, भरतकुमार सोलंकी

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मुंबई वार्ता संवाददाता

जब भी हम GST—गुड्स एंड सर्विस टैक्स का नाम सुनते हैं, तो ज़रा ठहर कर सोचिए—यह दो शब्दों से बना हैं, गुड्स (वस्तुएं) और सर्विस (सेवाएं)। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया कि गुड्स पर टैक्स कम और सर्विस पर टैक्स ज्यादा क्यों होता हैं?

चलिए, इसे सीधी भाषा में समझते हैं।गोल्ड पर 3% और ज्वेलरी मेकिंग चार्ज पर 5% GST क्यों?*जब आप सोने की ज्वेलरी खरीदते हैं, तो सोने पर 3% GST और मेकिंग चार्ज पर 5% GST देना पड़ता हैं, लेकिन यह फर्क क्यों? दरअसल, खुद सोना एक गुड्स हैं—यह एक भौतिक वस्तु हैं, जिसे आप खरीदते हैं और इस पर न्यूनतम टैक्स लगाया जाता हैं, लेकिन मेकिंग चार्ज एक सर्विस हैं, जिसमें डिज़ाइनिंग, कारीगरी और श्रम लागत शामिल होती हैं और सर्विसेज़ पर आम तौर पर ज्यादा टैक्स लगता हैं।यह तर्क सिर्फ सोने तक सीमित नहीं हैं।

इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और बीमा तक में यही फॉर्मूला लागू होता हैं। बीमा पॉलिसी पर GST अलग-अलग क्यों?अब ज़रा बीमा सेक्टर पर नजर डालते हैं। जब आप किसी टर्म इंश्योरेंस या ULIP पॉलिसी का प्रीमियम भरते हैं, तो आपको पता चलता है कि 18% GST देना पड़ता है! लेकिन अगर आप एंडोमेंट पॉलिसी लेते हैं, तो पहले साल 4.5% और बाद में सिर्फ 2.25% ही लगता हैं।क्या यह भेदभाव हैं? नहीं, बल्कि यह इस आधार पर तय होता हैं कि *बीमा प्रीमियम में कितना हिस्सा निवेश (गुड्स) हैं और कितना हिस्सा सर्विस हैं।

•टर्म इंश्योरेंस: 100% सर्विस, इसलिए 18% GST

•एंडोमेंट पॉलिसी: इसमें कुछ हिस्सा निवेश भी होता है, इसलिए कम GST

•यूनिट लिंक्ड पॉलिसी (ULIP): निवेश और सेवा दोनों शामिल हैं, लेकिन फंड मैनेजमेंट चार्ज पर 18% GST

बैंक से कैश निकालने पर GST क्यों नहीं?

अब यह सवाल सोचिए—जब आप बैंक से कैश निकालते हैं, तो कोई GST नहीं लगता। लेकिन अगर वही पैसा बीमा, फंड मैनेजमेंट या अन्य सर्विस में जाता है, तो वहां टैक्स लग जाता है! क्यों?क्योंकि कैश खुद एक गुड्स की तरह काम करता हैं। बैंक आपको कोई “सर्विस” नहीं दे रहा, सिर्फ आपका अपना पैसा लौटा रहा हैं।लेकिन जब आप उस पैसे से कोई बीमा या निवेश सेवा खरीदते हैं, तो वह एक सर्विस बन जाती हैं, जिस पर टैक्स लगता हैं।महंगी कारों पर टैक्स ज्यादा क्यों?

अब बात करते हैं कारों की। मान लीजिए, आप एक महंगी लग्ज़री कार खरीद रहे हैं, इसकी असल कीमत में से बड़ी राशि सिर्फ मटेरियल की लागत नहीं होती, बल्कि उसमें ब्रांड वैल्यू, डिजाइन, मार्केटिंग, डीलर का मुनाफा और अन्य सर्विसेज़ जुड़ी होती हैं।यही कारण हैं कि महंगी कारों पर 28% तक GST लगता हैं, साथ ही सेस भी जोड़ दिया जाता हैं।

GST को समझने का सही तरीका क्या हैं?

अगर आपको GST के खेल को समझना हैं, तो बस यह याद रखिए—

1.गुड्स (वस्तुएं) पर कम टैक्स, क्योंकि वे भौतिक संपत्ति हैं।

2.सर्विस (सेवाएं) पर ज्यादा टैक्स, क्योंकि वे इनटैन्जिबल (अदृश्य) मूल्य जोड़ती हैं।

3.जहां ज्यादा मुनाफा, वहां ज्यादा टैक्स—क्योंकि मुनाफा भी एक तरह की सर्विस ही हैं।अब अगली बार जब कोई कहे कि GST बहुत जटिल है!”, तो उसे प्यार से समझाइए—यह सिर्फ गुड्स और सर्विस का खेल हैं और यह खेल समझ में आ जाए, तो टैक्स का डर भी खत्म ।

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