■ RTI कार्यकर्ता अनिल गलगली ने उठाया पारदर्शिता पर सवाल।
मुंबई वार्ता संवाददाता

देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय स्टेट बँक (SBI) की CSR शाखा SBI फाउंडेशन ने खुद को सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के दायरे से बाहर बताते हुए एनजीओ को दिए गए फंड और ऑडिट रिपोर्ट साझा करने से इनकार कर दिया है।


RTI कार्यकर्ता अनिल गलगली ने SBI फाउंडेशन से जानकारी मांगी थी कि SBI फाउंडेशन द्वारा ACE Sports Development Programme के तहत किन एनजीओ को वित्तीय सहायता दी गई?
क्या इनमें से कोई एनजीओ ओलिंपियन द्वारा संचालित है?
किन एनजीओ का CAG (महालेखा परीक्षक) द्वारा ऑडिट हुआ है?
रिपोर्ट की प्रति मांगी गई थी। क्या किसी एनजीओ को ब्लैकलिस्ट किया गया है?
फंड नवीनीकरण की प्रक्रिया, निर्णय समिति की जानकारी, और यदि सेलिब्रिटी संस्थाओं को छूट दी गई हो तो उसका आधार क्या है?
क्या परियोजना नवीनीकरण के पहले अनिवार्य ऑडिट की नीति है?
इसके जवाब में SBI फाउंडेशन के निदेशक की ओर से कहा गया कि “”एसबीआई फाउंडेशन आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 2(एच) के अनुसार ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है।” और इसलिए वह RTI के तहत जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है।
इस जवाब पर अनिल गलगली ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “SBI एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, और SBI फाउंडेशन उसकी CSR इकाई है, जिसे सार्वजनिक धन से ही फंडिंग मिलती है। ऐसी संस्था अगर RTI के दायरे से बचने की कोशिश करती है तो यह पारदर्शिता से बचने और जवाबदेही से भागने की कोशिश है।”
गलगली ने कहा कि वह इस मामले को SBI के आरटीआई नोडल अधिकारी, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) तथा CSR निगरानी संस्थाओं तक ले जाएंगे।
उन्होंने कहा कि “जब सरकारी पैसे से फंड दिए जाते हैं, तब हर नागरिक को यह जानने का हक है कि पैसा किन्हें दिया गया, किस आधार पर दिया गया और उसमें कहीं गड़बड़ी तो नहीं हुई।”
यह मामला देशभर की उन संस्थाओं के लिए नजीर बनेगा जो सरकारी फंड लेकर भी RTI से बचने की कोशिश करती हैं।