लचर न्याय व्यवस्था

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राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने लंबित मुकदमों के न्याय तंत्र को रेखांकित करने का काम किया। उन्होंने लंबित मुकदमों को एक बड़ी चुनौती बताते हुए मुकदमों के कारण आम आदमी को होने वाली समस्याओं का वर्णन किया, उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे मुकदमों की संख्या पांच करोड़ तक पहुंच गई है। यह ठीक है कि लंबित मुकदमों को कम करने के लिए लोक अदालतें सक्रिय हैं, लेकिन नतीजे नहीं मिल रहे हैं। स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी हमारा न्याय तंत्र विकसित नहीं बन पाया है। न्याय में देरी कुंठा ही नहीं बढ़ा रही है, बल्कि विकास के कार्यों पर भी असर डाल रही है। अपराध के मामलों की तरह जमीन- जायदाद के मामले भी लम्बित हैं।
न्याय में देरी की समस्या से सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी अच्छी तरह परिचित हैं। उन्होंने जिला अदालतों के राष्ट्रीय सम्मेलन में यह बताया कि जिला स्तर पर न्यायिक कर्मियों की रिक्तियां 28 प्रतिशत और गैर-न्यायिक कर्मचारियों की 27 प्रतिशत हैं। उन्होंने लंबित मामलों को कम करने के लिए गठित एक समिति का जिक्र करते हुए ऐसे मामलों को कम करने के लिए एक कार्ययोजना भी रेखांकित की। इस कार्ययोजना के तहत ऐसे उपाय किए जाएंगे, जिनसे अदालतें पूरी क्षमता से काम कर सकें। इस कार्ययोजना में कुशल न्यायिक अधिकारियों की भर्ती करना और लंबित मुकदमों को हल करना भी शामिल है। यह कार्ययोजना प्रभावी तो नजर आती है, लेकिन बात तब बनेगी, जब उस पर समय रहते अमल हो और उसके अनुकूल नतीजे सामने आएं।
प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में जब बागडोर अपने हाथ में ली थी, तब उन्होंने पुराने कानूनों को खत्म करने का वादा किया था। इस वादे पर अमल करते हुए तमाम पुराने कानूनों को खत्म किया गया है, लेकिन लंबित मुकदमों का बोझ और न्याय में देरी की का समाधान नहीं हो पा रहा है।
देश में निचली अदालतों की जैसी कार्यप्रणाली है, वह न्याय तंत्र का उपहास सी उड़ाती प्रतीत होती है। निचली अदालतें न्यायाधीशों की कमी से जूझ रही हैं और इस कारण लोगों को समय पर न्याय नहीं मिल पाता। न्याय में देरी का कारण न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं के काम करने का तरीका है। इसी कारण तारीख पर तारीख का सिलसिला कायम है। यह आदमी को हतोत्साहित करने वाला है।
राष्ट्रपति ने यह सही कहा कि आम आदमी अदालतों का दरवाजा खटखटाने में घबराता है ।इसको उन्होंने ब्लैक कोट सिंड्रोम की जो संज्ञा दी है।
न्याय में देरी करना भी अन्याय ही है।न्याय आम आदमी से दूर होता जा रहा है। देश में जो निर्धन हैं, उसके लिए न्याय पाना उतना ही कठिन है। हमारे नीति-नियंता यह ध्यान रखें कि यदि न्यायिक तंत्र पर से लोगों का भरोसा उठा तो यह लोकतंत्र के लिए सही नहीं । सामान्य मामलों में ह फैसला होने में हीन देर नहीं होती वरन गंभीर मामलों में भी समय पर न्याय नहीं मिल पाता। नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार के जिन मामलों की सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर होनी चाहिए और फैसला जल्द दिया जाना चाहिए, उनमें भी आवश्यकता से अधिक देरी होती है। भ्रष्टाचार के मामलों का सामना कर रहे नेताओं के समर्थक यह माहौल बनाते हैं कि उन्हें- झूठे मामले में बदले की राजनीति के तहत फंसाया गया है। भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नेताओं को जब कभी जमानत मिल जाती है तो ऐसे नेता और उनके समर्थक यह प्रचारित करने लगते हैं कि उन्हें क्लीनचिट मिल गई। दिल्ली के आबकारी घोटाले में गिरफ्तार लोगों को जमानत मिलने के बाद ऐसा ही माहौल बनाया जा रहा है। इन लोगों को जमानत इसलिए मिली, क्योंकि उनके ट्रायल शुरू होने में देरी हो रही थी। एक अन्य कारण जांच एजेंसियों की ओर से अदालतों के समक्ष पुख्ता प्रमाण न रख पाना भी है।
यदि जांच एजेंसियां अपना काम सही तरह से नहीं कर पाएंगी तो फिर राजनीतिक भ्रष्टाचार पर प्रहार नहीं किया जा सकता। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों और विशेष रूप से यौन अपराधों के मामलों की सुनवाई में भी देरी होती है और जिन्होंने सारे देश का ध्यान आकर्षित किया होता है। यह एक तथ्य है कि दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया कांड के दोषियों की सजा पर अमल करने में आठ वर्ष का समय लग गया। इसी तरह उन्नाव के एक चर्चित मामले में अभी तक अंतिम फैसला नहीं हो सका है। अभी हाल फिलहाल में कोलकाता डॉक्टर कांड का भी अभी तक फैसला नहीं हो सका है।

न्याय में देरी के कारणों का उल्लेख कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के लोग जब-तब करते ही रहते हैं, लेकिन इन कारणों का निवारण कैसे हो, इस पर उनमें आम राय कायम नहीं हो पा रही है। उन्हें न केवल आम राय कायम करनी होगी, बल्कि आपस में मिलकर ऐसी कोई व्यवस्था भी बनानी होगी, जिससे न्याय में देरी की समस्या का प्रभावी तरीके से समाधान हो सके। यदि ऐसा नहीं हो सका तो भ्रष्टाचार और अपराधों पर अंकुश लगाना तो कठिन होगा ही, देश के विकास की गति को आगे बढ़ाना और विकसित भारत के सपने को साकार करना भी मुश्किल होगा।

नन्दिनी रस्तोगी ‘नेहा’ मेरठ

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