मुंबई (सं. भा.) विदेश में शिक्षा हासिल करना बड़ी संख्या में विद्यार्थियों का सपना होता है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकार को विदेश में पढ़ाई करने के लिए दी जा रही छात्रवृत्ति योजना का लाभ लेने वाले विद्यार्थी नहीं मिल रहे हैं। हाल ही में उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग और अल्पसंख्यक विकास विभाग ने चयनित विद्यार्थियों की सूची प्रकाशित की है, जिसके मुताबिक, उच्च शिक्षा विभाग को सिर्फ 26 ऐसे विद्यार्थी ऐसे मिले हैं, जिन्हें विदेश में शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति दी जा सकती है। जबकि विभाग 40 विद्यार्थियों को विदेश में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति को मंजूरी दे सकता है। वहीं अल्पसंख्यक विकास विभाग की स्थिति तो और भी खराब है। यहां 75 विद्यार्थियों को विदेश में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति दी जा सकती है, लेकिन आवेदन करने वाले विद्यार्थियों में से सिर्फ 24 का चयन ही छात्रवृत्ति योजना के लिए किया जा सका है। इनमें से 23 विद्यार्थियों को स्नातकोत्तर, जबकि 1 विद्यार्थी को पीएचडी के लिए छात्रवृत्ति मिलेगी।
मुस्लिम समुदाय लाभ लेने में पीछेः अल्पसंख्यक विकास विभाग की इस योजना के तहत 42 मुस्लिम समुदाय के विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप दी सकती है, लेकिन जारी सूची के मुताबिक, मुस्लिम समाज के केवल 7 विद्यार्थियों को विदेश में पढ़ाई की छात्रवृत्ति के योग्य पाया गया है। योजना के तहत बौद्ध समाज के 21, ईसाई, जैन समुदायों के 4-4, सिख समाज के 2, जबकि पारसी और ज्यू समुदाय के एक विद्यार्थी का चयन विदेश में पढ़ाई की छात्रवृत्ति के लिए किया जा सकता है। इन दो विभागों के अलावा सामाजिक न्याय विभाग, योजना विभाग, अन्य पिछड़ा बहुजन विकास विभाग भी विद्यार्थियों को विदेश में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति देते हैं, लेकिन इन विभागों को भी पर्याप्त योग्य विद्यार्थी नहीं मिल पाते।
स्टूडेंट्स राइट एसोसिएशन के उमेश कोर्रम ने कहा कि योजना बनाने वालों के पास विशेषज्ञता की अभाव है। विदेशी शिक्षा संस्थानों की समय सारिणी अलग होती है जो अगले साल सितंबर के लिए इस साल सितंबर में ही शुरू हो जाती है। ऐसे में सरकार को छात्रवृत्ति के लिए इसी के मुताबिक, विज्ञापन भी जारी करना चाहिए। अगर विद्यार्थी को पहले से पता हो कि उसे स्कॉलरशिप मिलेगी तो वह समय पर आवेदन कर सकता है। सरकार को चाहिए कि वह इसके लिए विदेश शिक्षा के विशेषज्ञों या कंसल्टेंसी फर्म की मदद ले।
उमेश कोर्रम ने कहा कि सिर्फ मंजूरी में देरी नहीं होती। पढ़ाई शुरू होने के बाद आगे के वर्ष के लिए पैसे भेजने में सरकार देरी करती है, ऐसे में विद्यार्थियों को विश्वविद्यालयों से मदद की आस लगानी पड़ती है।