रवीन्द्र मिश्रा/ मुंबई वार्ता

हनुमान जयंती के अवसर पर माटुंगा की मरुबाई देवी अपने भक्तों से मिलने के लिए अपने मंदिर से निकलती है। अपने कुल देवी का दर्शन करने के लिए वहां के निवासियों में होड़ मच जाती है ।


मरुबाई गांवदेवी मंदिर के ट्रस्टी अनिल गावंड बताते हैं कि यह देवी मां की मूर्ति 400 वर्ष पुरानी है । यह एक स्वयं भू मूर्ति है जो पीपल के एक पेड़ के नीचे से मिली है । मंदिर का इतिहास बताते हुए गावंड कहते हैं कि मुंबई में पहले पहाड़ों के छोटे छोटे टीले हुआ करते थे । माटुंगा भी पहाड़ का एक टीला हुआ करता था । यहां के लोग मछली पकड़ने तथा नमक की खेती करते थे । यह गांव एक पहाड़ी जिसे मुंबई की भाषा में टेकड़ी कहा कहते थे । वहां बसा था । लोगों का विश्वास था कि इस देवी पर किए गए अभिषेक के जल से मृत्यु तुल्य बिमारियों से छुटकारा मिलता है । इसलिए इस देवी को लोग मरुबाई के नाम से जानने लगे । मरुबाई गांवदेवी टेकड़ी मंदिर के नाम से इस क्षेत्र का नाम माटुंगा रखा गया । अंग्रेज लोग भी इस देवी के दर्शन के लिए आते थे । यहां दर्शन के बाद उन्हें कुछ अलग अनुभूति होती थी । वे इस देवी को सरस्वती के रूप में मानते थे । इसलिए माटुंगा क्षेत्र एक शिक्षा का केंद्र बन गया । यहां वी जे टी आई, खालसा कॉलेज, रुईया कालेज आदि कालेज कालेजों में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र देश की समाज की सेवा कर रहे हैं ।
हनुमान जयंती के अवसर पर हुई मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर पूरे माटुंगा गांव में देवी की बाजे गाजे के साथ पालकी निकाली जाती है । जिसका दर्शन करने के लिए लोग घंटों पहले से ही प्रतीक्षा करते हैं ।जब माता की पालकी वहां से गुजरती है तो लोग उनकी आरती उतारते हैं । लोग पालकी के नीचे से निकलने के लिए आतुर देखे जाते हैं ।उनका मानना है कि इस पालकी के नीचे से गुजरने के बाद उनके दुख दर्द तथा अला बला सब दूर हो जाएगी ।माता अपने पालकी में बैठकर पूरे गांव का भ्रमण करते हुए वापस अपने मंदिर में आ जाती है । उसके बाद भक्त मंदिर में महाप्रसाद का आनंद उठाते हैं ।