वरिष्ठ संवाददाता /मुंबई वार्ता

उत्तर भारतीय समाजसेवी तथा पूर्व विधान परिषद सदस्य (विधायक) घनश्याम राज नारायण दुबे का 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने लीलावती अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। उनके पार्थिव शरीर को उनके गृह जनपद उत्तर प्रदेश के भदोही ले जाया गया जहां वाराणसी (काशी) में गंगा तट पर अंतिम संस्कार किया गया।
दुबे के निधन पर मुंबई के उत्तर भारतीय समाज में शोक है। घनश्याम दुबे, शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के करीबी थे। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के सुरियावां निवासी घनश्याम दुबे, महाराष्ट्र के पूर्व एमएलसी, पूर्व ब्लॉक प्रमुख (सुरिवयां-वाराणसी), घनश्याम दुबे महाविद्यालय और पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज सेवाश्रम इंटर कॉलेज (सुरियावां-वाराणसी) के अध्यक्ष और उत्तर भारतीय महासंघ, भारतीय विकास संस्थान, उपनगर तालीम संघ के संस्थापक थे।
उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, कमलापति त्रिपाठी, चन्द्रशेखर, कल्याण सिंह, केसरी नाथ त्रिपाठी, नारायण दत्त तिवारी, विजय बहुगुणा, नारायण राणे, सुनील दत्त और कई अन्य प्रसिद्ध हस्तियों के साथ भी काम किया है। घनश्याम दुबे प्रसिद्ध पहलवान ब्रह्मदेव दुबे के पौत्र तथा पहलवान राज नारायण दुबे के पुत्र हैं, जो भारतीय कुश्ती जगत के कर्णधार के रूप में प्रसिद्ध हुए।
घनश्याम दुबे ने अपने परदादा बद्री प्रसाद दुबे और दादा ब्रह्मदेव दुबे की संस्कृति को अपनाने के बाद तन और मन कुश्ती जगत को समर्पित कर दिया था। ब्रह्मदेव दुबे पुणे में महान क्रांतिकारी चाफेकर बंधुओं के अखाड़े का संचालन करते थे। सेठ बद्री प्रसाद दुबे मुंबई के प्रतिष्ठित व्यवसायी थे, जिन्होंने भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ के लिए 1931 में धन मुहैया कराया था। ऐतिहासिक बॉम्बे टॉकीज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
दुबे के निधन पर उत्तर भारतीय संघ के अध्यक्ष संतोष आरएन सिंह ने गहरा शोक व्यक्त किया है। सिंह ने संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि हमने एक दूरदर्शी नेतृत्व खो दिया है। मैं परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मुक्त आत्मा को शांति और अपने श्री चरणों में स्थान दें। साथ ही उनके परिवार एवं शुभचिंतकों को यह दुख सहने की क्षमता प्रदान करे। घनश्याम दुबे के निधन से सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र को अपूरणीय क्षति हुई है।