पारदर्शिता की ओर बढ़ती न्याय व्यवस्था

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सुप्रीम कोर्ट और न्याय व्यवस्था लगातार पारदर्शिता की ओर कदम बढ़ा रही है, साथ ही यह संदेश देने की भी कोशिश कर रही है कि न्याय सभी के लिये है, न्याय के समक्ष सब बराबर है। कानून को सब अंधा कहते थे क्योंकि न्यायालय में खड़ी मूर्ति के आँखों पर पट्टी बँधी थी और उसके एक हाथ में तलवार थी और एक हाथ में तराजू था। लेकिन अब न्याय अंधा नहीं है। न्याय की देवी की आँखों की पट्टी हट गई है ओर उनके हाथ से तलवार भी हटा दी गई है। न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में एक पुस्तक है जो संविधान जैसी दिखती है। इसी के साथ एक और बदलाव हुआ। सुप्रीम कोर्ट के सामने तिलक मार्ग पर एक बड़ी वीडियों वाल लग गई है, जिसमें हर वक्त सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस क्लॉक चलती है। इससे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की रियल टाइम जानकारी मिल सकती है।

यह सब बदलाव चीफ जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ की निगरानी में हुए। खुली आँखों से समानता के साथ न्याय करने का संदेश देने वाला यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट की जजों की लाइब्रेरी में लगी न्याय की देवी की प्रतिमा में हुआ है। यह मूर्ति छह फुट की है और इसे सफेद पारम्परिक पोशाक में दर्शाया गया है। इनके सिर पर लम्बे बाल व मुकुट भी सुशोभित है। संविधान की किताब का हाथ में होना बताता है कि न्याय सर्वोच्च कानून पर आधारित है न कि किसी दवाब या दण्ड पर।
भारत में दुनिया की प्राचीन न्यायपालिका है। यहां प्राचीन काल में भी व्यवस्थित न्यायतंत्र था। राजा हरिश्चंद्र, रघु और शिवि आदि न्यायप्रियता के लिए देश में आज भी चर्चित हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एसएस धवन ने प्राचीन भारत की न्यायिक प्रणाली का खूबसूरत अध्ययन किया है। उन्होंने ब्रिटिश लेखकों पर प्राचीन भारत की न्याय व्यवस्था के बारे में गलत और मनमाने विचार व्यक्त करने के आरोप लगाए। उन्होंने हेनरी मेने पर भारत की न्याय व्यवस्था को बदनाम करने का आरोप भी लगाया। यही स्थिति अनेक यूरोपवादी विद्वानों की है। धवन ने भारत की प्राचीन न्याय व्यवस्था को निष्पक्ष बताया। इसके ज्ञान के लिए प्राचीन साहित्य का अध्ययन जरूरी कहा। प्राचीन न्याय व्यवस्था मे नन्यायाधीश कानून के अधीन थे। प्राचीन न्यायपालिका में भी न्यायधीशों का पदानुक्रम था। राजा मनमाना आचरण नहीं कर सकते थे। महाभारत के अनुसार जो – राजा अपनी प्रजा की रक्षा करने की शपथ लेता है और बाद में वैसा नहीं करता तो उसे दंडित करना चाहिए।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि प्रजा की प्रसन्नता में राजा की प्रसन्नता है अर्थशास्त्र के अनुसार राज्य प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित था। प्रत्येक स्तर पर अधिकारी कर्मचारी थे। न्याय व्यवस्था थी। मनु, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, बृहस्पति आदि ने प्राचीन भारत की न्याय व्यवस्था को सुंदर बताया है। न्यायाधीश के लिए निर्धारित आचार संहिता थी। निष्पक्ष काम करने वाला न्यायप्रिय राजा प्रशंसा का पात्र था।राजा आसन पर बैठतेही विवस्वान के पुत्र यम की शपथ लेकर काम करते थे।

नई प्रतिमा से बराबरी के व्यवहार से सन्तुलित न्याय का संदेश बुलन्द होता है। न्याय की देवी की यह मूर्ति पिछले वर्ष जजों की लाइब्रेरी में हुए रेनोवेशन के दौरान लगाई गई थी। पुरानी मूर्ति का जो संदेश था कि कानून किसी की दौलत, पद, प्रतिष्ठा को नहीं देखता। न्याय की देवी के हाथ से तलवार हटाने का भी संकेत शायद औपनिवेशिक काल की चीजों को छोड़ना है। तिलक मार्ग पर लगी जस्टिस क्लाक सुप्रीम कोर्ट के कामकाज का रोजाना का हिसाब प्रतिपल जनता के सामने पेश करेगी, जस्टिस क्लाक को वेबसाइट पर भी देखा जा सकता है। मथुरा रोड पर भी ऐसी ही वाल क्लॉक लगाने का विचार है। जस्टिस क्लॉक में सुप्रीम कोर्ट में दर्ज हुए, निपटाये गये और लम्बित मुकदमों का वर्षवार, तारीखवार, ब्यौरा देखा जा सकता है। इस पारदर्शिता से लोगों में विश्वास का संचार होगा, साथ ही न्याय की देवी के प्रति जो लोगों की सोच थी, उसमें भी परिवर्तन होगा। –

नन्दिनी रस्तोगी ‘नेहा’, मेरठ

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