कालीना विधानसभा लड़ने से पहले ही हार गई है भाजपा

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श्रीश उपाध्याय/मुंबई

कालीना विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के मतदान पैटर्न को देखा जाए तो कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी यह विधानसभा लड़ने से पहले ही हार चुकी है.


वर्ष 1999 से 2014 तक इस विधानसभा पर कॉंग्रेस के तत्कालीन नेता कृपाशंकर सिंह का दबदबा रहा. जबकि वर्ष 2014 में मोदी लहर के बावजूद भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार अमरजीत सिंह करीब 1300 मतों से हार गए थे. उस समय कॉंग्रेस के कृपाशंकर सिंह को 23595 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कप्तान मलिक को 18144 मत मिले थे. शिवसेना के संजय पोतनिस ने 30715 मत लेकर जीत हासिल की थी.
2014 विधानसभा चुनाव के दौरान कृपाशंकर सिंह को मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं ने मतदान किया था जबकि कप्तान मलिक को सिर्फ मुस्लिम मतदाताओं ने मतदान किया था.
वर्ष 2019 विधानसभा में भाजपा- शिवसेना मिलकर चुनाव लडी और शिवसेना के संजय पोतनिस दूसरी बार 53319 मत लेकर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कॉंग्रेस के जॉर्ज अब्राहम को करीब 5000 हजार मत से हराया था. उस समय मनसे के संजय तुर्डे ने 22,405 मत लेकर मराठी मतों मे सेंध लगाई थी.
2024 विधानसभा चुनाव में मुसलमान और ईसाई मतदाता स्पष्ट है कि महा विकास आघाड़ी के समर्थन में है. कालीना विधानसभा से उबाठा (शिवसेना ) उम्मीदवार संजय पोतनिस को कॉंग्रेस का समर्थन है. राष्ट्रवादी कॉंग्रेस पार्टी के कप्तान मलिक और संजय पोतनिस की दोस्ती जगजाहिर है. इसके अलावा भाजपा ने कप्तान मलिक के भाई नवाब मलिक के खिलाफ बयानबाजी कर उन्हें अपना दुश्मन बना लिया है.
कालीना विधानसभा में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 62,000 है और ईसाई मतदाताओं की संख्या 44,000 के करीब है. जबकि हिन्दू मतदाताओं की संख्या 92 हजार के करीब है जो कि उत्तर भारतीय- मराठी- दक्षिण भारतीय और कुछ संख्या में गुजराती- मारवाडी मतदाताओं मे बटा हुआ है. जिसमें से मराठी मतदाता बड़ी संख्या में संजय पोतनिस के पक्ष मे जाता दिखाई दे रहा है क्योंकि यहां पर शिंदे की शिवसेना का अस्तित्व ही नहीं है.
कालीना से इस बार मनसे ने भी संदीप को उम्मीदवारी दी है. जो कि काफी कमजोर उम्मीदवार दिखाई दे रहे हैं.
कालीना विधानसभा की चुनावी लड़ाई के बारे में पूछने पर उबाठा उम्मीदवार एवं मौजूदा विधायक संजय पोतनिस ने कहा कि- हमारे क्षेत्र में शिंदे की शिवसेना नगण्य है. ईसाई मतदाताओं का मुझे पहले से ही समर्थन मिलता रहा हैं. इस बार महा विकास आघाड़ी के कारण मुस्लिम मतदाताओं का भी साथ मिलेगा. 2014 से पहले यहां भाजपा उम्मीदवार हुआ करता था. इसलिए पूरी विधानसभा के लोगों से हमारा पहले ज्यादा संपर्क नहीं रहा करता था. 2014 में युति टूटने के बाद मात्र 15 दिन की तैयारी में ही हमने भाजपा को मोदी लहर के बावजूद हराया था. पिछले 10 वर्षो से मैं पूरी विधानसभा में सभी समाज के लोगों की दिनरात सेवा कर रहा हूँ. आशा है कि इस बार हम अत्याधिक मतों से जीत हासिल करेंगे.

कालीना विधानसभा से आरपीआई के कोटे से, भाजपा के निशान पर चुनाव लड़ रहे अमरजीत सिंह ने कहा कि- चुनाव जीतने के बाद स्थानीय विधायक संजय पोतनीस कभी भी जनता के बीच नजर नहीं आए. लोगों में उनके प्रति काफी रोष व्याप्त है. 2014 के पहले से ही मैं कालीना विधानसभा में सक्रिय हूँ और सभी समाज के लोगों के लिए काम कर रहा हूं. आशा है कि सभी समुदाय के लोगों का मुझे साथ मिलेगा और मैं जीत हासिल करूँगा.

कालीना विधानसभा में मुस्लिम- ईसाई मतदाताओं की बहुलता, भाजपा उम्मीदवार और स्थानीय नेताओ के बीच की रस्साकशी, शिंदे की शिवसेना की कमजोर हालत, कमजोर मनसे उम्मीदवार , बटा हुआ हिन्दू मतदाता, एकजुट मुस्लिम मतदाता कुछ ऐसे तथ्य है जिनको मद्देनजर रखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा कालीना विधानसभा लड़ने से पहले ही हार चुकी है. भाजपा- आरपीआई उम्मीदवार अमरजीत सिंह का आत्मविश्वास तारीफ के काबिल है. अक्सर जंग संख्या बल से नहीं अपितु आत्मविश्वास से जीती जाती है. अब देखना यह है कि राजनीतिक गणित जीतता है या आत्मविश्वास!

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