चंद्रेश दुबे/ लेखक/ मुंबई वार्ता

पुंछ में गोलियां चली थीं, छतें टूटी थीं, बच्चे मरे थे।17 शव, 100 से अधिक घायल, दीवारों पर बारूद के निशान और छतों पर सिसकती उम्मीदें।मगर उस गांव की मिट्टी अब भी बताती है , राहुल आया था, प्रधानमंत्री नहीं।
गुरुद्वारे के पास खड़े उस बुज़ुर्ग सरदार ने कहा —मोदी ने तो पुंछ का नाम तक नहीं लिया। हमारे ज़ख्मों पर मरहम राहुल ने रखा है।
● राहुल गांधी हर जगह पहुंचे
पहलगाम में हमले के बाद अगले ही दिन घायलों के पास, कानपुर व हरियाणा में शहीदों के घर, CWC की बैठक बुलाई, इंडिया गेट पर श्रद्धांजलि दी, दोनों बार सर्वदलीय बैठक में शामिल हुए जहाँ प्रधानमंत्री नहीं आए।और प्रधानमंत्री…? एक भी शोक-संतप्त परिवार से नहीं मिले। कश्मीर, पुंछ, पहलगाम नहीं गए। संसद का सत्र नहीं बुलाया, न सवालों का जवाब दिया। उल्टा, उनके नेता राहुल गांधी को पाकिस्तानी एजेंट बताने लगे।
अब ज़रा कल्पना कीजिए, अगर मीडिया निष्पक्ष होता आज हर चैनल की हेडलाइन होती —प्रधानमंत्री क्यों नहीं पहुंचे पुंछ?क्या मोदी का राष्ट्रवाद केवल चुनावी भाषणों में है?राहुल की संवेदनशीलता बनाम मोदी की चुप्पी मगर नहीं।मीडिया ने कैमरे घुमा दिए, स्पिन दे दिया, और राहुल गांधी के पुंछ दौरे को अदृश्य कर दिया। ये वही मीडिया है जिसने पुलवामा की चिता पर टीआरपी की बिरयानी पकाई थी।जो हर शहीद की मौत को ‘प्रधानमंत्री का साहस’ बता देता है।मगर वो नहीं बताएगा कि आज भी कई गाँवों में लोग पाक की गोलियों से मर रहे हैं,और प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों में व्यस्त हैं।
यह वही मीडिया है, जिसने भारत के सबसे संवेदनशील विषय राष्ट्र की सुरक्षा को भी कॉर्पोरेट सौदेबाज़ी और प्रोपेगैंडा में बदल दिया।यही वजह है कि ड्रैगन पास और चीन-अडाणी सौदे की खबरों पर भी सन्नाटा है। प्रेस की आज़ादी नहीं होती, तो संसद खोखली होती है।और जब संसद खोखली होती है, तो लोकतंत्र सिर्फ़ एक इवेंट बन जाता है। जिसका नाम लोकसभा चुनाव है। लोगों को समझना होगा,देश का असली दुश्मन वो आतंकवादी नहीं जो सरहद के पार बैठा है, बल्कि वो कैमरा है जो गोली की आवाज़ छुपा लेता है, और नेता के झूठ को सच बना देता है।
● सवाल उठाइए
अब नहीं तो फिर कभी नहीं।राहुल को मत अपनाइए, पर सच को मत छोड़िए।देश अगर खड़ा है, तो उसकी रीढ़ स्वतंत्र मीडिया है।और आज वही रीढ़, सुपारी लेकर झुक चुकी है।