■ “शठे शाठ्यम समाचरेत् ।।”
मुंबई वार्ता/श्रीश उपाध्याय

“शठे शाठ्यम समाचरेत् ।।”अर्थ: दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिये। यह विदुर नीति है …वैसे आचार्य चाणक्य भी इस नीति से सहमति रखते है। यह कहावत भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल और कॉंग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत विवाद पर एकदम सटीक बैठती है।
एक न्यूज चैनल पर परिचर्चा के दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल ने कॉंग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत को मां की गाली देते हुए संबोधित किया। वीडियो डेढ़ साल पुराना होने के बावजूद X पर ट्रेडिंग है।


उसी X पर सुरेंद्र राजपूत का पहले का वीडियो भी ट्रेडिंग है- जिसमें वो परिचर्चा के दौरान एक प्रवक्ता की मां को बार बाला बता रहा है।
सुरेंद्र राजपूत के पास गाली देने का कापीराइट नहीं है। अगर लगातार बदतमीजी करोगे तो कभी न कभी कोई न कोई “बाप” मिलेगा ही।
आखिरकार सुरेंद्र राजपूत को बाप मिल ही गया।
ऐसे लोगों की तरफदारी करने की बजाय विचार करना चाहिए कि करीब 30 वर्षों तक पत्रकारिता जगत में सक्रिय एक वरिष्ठ पत्रकार और देश में सत्तासीन पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता कितना मजबूर हुआ होगा कि उनके मुख से ऐसी आपत्तिजनक बात निकली ।
सुरेंद्र राजपूत के पहले की परिचर्चाएं ध्यान से सुनेंगे तो उसकी धृष्टता दिखेगी। उस पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत थी।
कहावत है न कि कचरा साफ़ करोगे तो हाथ मैले होंगे ही। वहीं प्रेम शुक्ल के साथ हुआ है।
प्रेम शुक्ल ने “शठे शाठ्यम समाचरेत् ।।” महावरे पर अमल करते हुए सुरेंद्र को सिर्फ यही बताने की कोशिश की है कि दुसरों की मां को अपनी मां की तरह समझो।
आखिरकार सुरेंद्र को उसकी भाषा में समझाया गया है अब शायद वह किसी न्यूज चैनल परिचर्चा में दुसरों के मां-बाप- बहन-परिवार के बारे में टिप्पणी करने से पहले हज़ार बार सोचेगा। और अगर दोबारा हिमाकत करेगा तो देश में प्रेम शुक्लाओ की कमी नहीं है।