श्रीश उपाध्याय/ संपादकीय/मुंबई वार्ता

मुंबई में आज कल हिंदी-मराठी विवाद अपनी चरम सीमा पर है। हिंदी बोलने वालों को लग रहा है कि मराठी भाषी उनका विरोध कर रहे हैं और मराठी भाषियों को लग रहा है कि हिंदी भाषी उनका विरोध कर रहे हैं।


बहुत सीधी स्पष्ट सी बात है कि किसी भी राज्य में रहते हुए यदि किसी को उस राज्य की भाषा न आती हो तो उसे सीखना चाहिए, इससे आप उस राज्य के लोगों से घुलमिल जाएंगे। यदि आपको संबंधित जगह की भाषा न आती हो तो स्थानीय लोगों को आप उनकी भाषा को लेकर अपमानजनक बात नहीं बोल सकते। दूसरी तरफ अगर किसी को स्थानीय भाषा न आती हो तो स्थानीय लोग उससे बात न करके अपना विरोध दर्ज कर सकते हैं ना कि उसकी पीटाई करके।
मुंबई ऐसा शहर है जहां पर शत प्रतिशत लोगों को हिंदी आती है फिर वह मराठी हो या गैर मराठी। यहां तक कि मराठी और गैर मराठी लोगों के बीच रोटी-बेटी का अटूट संबंध है। हज़ारों मराठी और गैर मराठी परिवारों के बीच रिश्तेदारी है। ऐसे माहौल में कुछ मतिभ्रष्ट, मराठी का विरोध कर कुछ असामाजिक तत्वों को अपनी गुंडागर्दी चमकाने का अवसर देते हैं और इसके लिए दोनों बराबर जिम्मेदार हैं।
मुंबई में दशकों से रहने वाले गैर मराठी, अच्छी मराठी बोलते हैं और मराठी को लेकर उनके मन में कोई द्वेष नहीं है।परेशानी तब पैदा होती है जब हाल ही में बाहर के राज्यों से आए किसी हिंदी भाषी का मराठी भाषी से विवाद होता है। या कोई मराठी भाषा न आने पर भी शालीनता से अपनी “कमी” को न स्वीकारते हुए भाषा के प्रति द्वेष प्रकट करता है। और अगर किसी की भी भाषा के प्रति कोई भी अपशब्द बोलेगा या अपमान करेगा तो उसे स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना ही पड़ेगा।
जब भी किसी समाज का व्यक्ति भाषा विवाद में मार खाता है तो उसके समाज के लोगों को बुरा लगता है। क्योंकि बात का बतंगड बनाते हुए संबंधित व्यक्ति को मार कर, उसका वीडियो बनाकर प्रसारित कर, पूरे समाज को बदनाम करने की कोशिश की जाती है। जबकि संबंधित समाज के अधिकतर लोगों को मराठी बोलनी आती है। शायद इसी बात को समझते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अध्यक्ष राज ठाकरे ने हाल ही की जनसभा में ऐसे वाकयों का वीडियो न बनाने की बात कही।
एक आम घटना का जिक्र करता हूँ जिससे शायद अधिकतर उत्तर भारतीय वाकिफ है। जब भी मुंबई से उत्तर प्रदेश के गाँव गया बच्चा या व्यक्ति वहां हिंदी में बात करने की कोशिश करता है तो अमूमन बड़े-बूढ़े उसे कई बार टोकते हुए बोलते हैं- “कैसन अँग्रेजी बोलत हय।” इस टोका टाकी का मतलब होता है कि भोजपुरी बोलना सीखिए, हिंदी बोलने से आप गैर प्रतीत हो रहे हैं। तब आप वहाँ पर कैसे अपने आप में सुधार लाते हैं… वहाँ तो विवाद नहीं करते… अपितु लज्जित अवश्य महसूस करते हैं। ऐसा ही मुंबई में हो रहा है।
मराठी भाषी जब भी आपसे मराठी भाषा में बोलने को कहें तो मराठी में बात करने की कोशिश कीजिए। मराठी न आती हो तो हाथ जोड़कर विनम्रता से मराठी भाई को बताएं कि आप नए हैं, आपको मराठी नहीं आती। टूटी-फूटी बोलकर आप मराठी भाषा का अपमान नहीं करना चाहते। सारा विवाद खत्म हो जाएगा। परेशानी तब होती है जब आप, मराठी न बोल पाने की अपनी कमी छिपाने के लिए सामने वाले से विवाद करते हैं।
पूरा हिंदुस्तान एक ही है लेकिन अलग अलग भाषा-संस्कृति को अपने में व्याप्त किए हुए। आपको कोई भाषा नहीं आती तो आप उस भाषा का अपमान नहीं कर सकते। अगर टूटी-फूटी भाषा में भी बात करेंगे तो मराठी भाषी ज्यादा से ज्यादा हंसता है लेकिन मन में उसे अच्छा ही लगेगा।
उदाहरणार्थ आज से करीब 45 साल पहले की बात है। मैं बहुत छोटा था। मेरे नानाजी की दादर में आटा पीसने की चक्की थी। मेरे नानाजी की उम्र करीब 100 साल की थी। वे मराठियों से बात करते हुए बोलते थे– सबुर कर… किती किलो आहे… जरा मोटा पतला आटा झाला है.. समझून घे रे … तू नन्तर आ.. तेरा पहले करडार… सबुर कर। उनकी इस कोशिश पर स्थानीय मराठी उनसे प्यार करते थे।
किसी की भी मातृभाषा उसके लिए उसके मां के समान है। आपको किसी की भी मां की बेइज्जती करने का अधिकार नहीं। इस छोटी सी बात को अगर समझ ले तो कोई विवाद रहेगा ही नहीं।
उत्तर प्रदेश के बनारस समेत विभिन्न इलाकों में मराठी भाषी रहते हैं। वे वहां रहकर हिंदी भाषा का अपमान नहीं करते। मराठी बोलने के साथ इतनी अच्छी हिंदी बोलते हैं कि हम जैसे तेरेको-मेरेको वाली हिंदी बोलने वालों को अपने ऊपर शर्म आती है।मेरा मानना है कि कोई भी भाषा आपको नहीं आती तो आप भाषा को दोष नहीं दे सकते। अपनी कमी को छिपाने के लिए किसी भी भाषा का अपमान तो बिल्कुल नहीं कर सकते।
अब रही बात मराठी न बोलने पर मारपीट करने वालों की तो ये वो लोग है जिनको महाराष्ट्र की 288 विधानसभा चुनाव क्षेत्र के निवासी नकार चुके हैं। मनसे को एक विधानसभा में जनता ने इतना मत नहीं दिया है कि वे एक विधायक तक जीता सके।यही हाल लगभग उबाठा का भी हुआ है। कभी सत्तासीन रही उबाठा 20 विधायकों पर सिमट गई है, वो भी कॉंग्रेस और मुस्लिम मतदाताओ की कृपा से है।दोनों राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है। मिल कुछ नहीं रहा हैं। हताशा में भाषा-वाद को भुनाकर गरीब गैर मराठियों को मारने से भीड़ जमा करने की कोशिश की जा रही है । वो तो इनकी जनसभा में भी अच्छी खासी होती है। लेकिन मत… वो तो नहीं मिलता।
मराठी भाषा का अपमान एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर मराठी भाषी को बुरा लगेगा ही और बुरा लगेगा तो उसे प्रकट करने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ेगी । लेकिन वो भीड़ इस मुद्दे पर मतदान करेगी.. मुश्किल है.. इतिहास गवाह है।
फिलहाल मराठी भाषी- परप्रांतीय इस बात को अच्छी तरह समझता है। भाषा भुनाने के लिए नहीं, प्यार करने और प्रचार प्रसार के लिए है। जहां तक बात भाषा विवाद में पिटने वाले की है तो उसे देखकर बुरा लगता है… और पीटने वाले को देखकर दया आती है… बाकी हम तो जनता है … और जनता सब जानती है।


