मुंबई वार्ता संवाददाता

नमो नमो संगठन इस माध्यम से स्पष्ट रूप से अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है कि हिन्दी हमारे राष्ट्र की राजभाषा है और यह सम्माननीय है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी स्वयं अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गर्व के साथ हिन्दी का उपयोग करते हैं, जो देशवासियों के लिए प्रेरणादायक है।किन्तु, हिन्दी भाषा को अनिवार्य रूप से हर स्थान पर लागू करना — विशेषकर ऐसी स्थिति में जहाँ अन्य भाषिक समुदाय भी मौजूद हैं — यह एक गैर-लोकतांत्रिक और मानसिक उत्पीड़न का रूप ले सकता है।


किसी भी भाषा को थोपा जाना, चाहे वह हिन्दी ही क्यों न हो, भारतीय संविधान की भावना के विपरीत है।यह विषय राजनीतिक नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता, भाषाई अधिकार और संवैधानिक गरिमा से जुड़ा हुआ है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अनेक भाषाओं को मान्यता प्राप्त है, और प्रत्येक भारतीय को अपनी मातृभाषा में कार्य करने, बोलने और संवाद करने का अधिकार है।
हम निम्नलिखित बिंदुओं पर अपनी बात स्पष्ट करना चाहते हैं:
1. भाषा थोपना नहीं, अपनाना चाहिए। हिन्दी का प्रचार-प्रसार स्वाभाविक रूप से हो, न कि जबरदस्ती।
2. प्रधानमंत्री की हिन्दी प्रेम प्रेरणा है, लेकिन उन्होंने कभी इसे दूसरों पर थोपने की बात नहीं कही।
3. संवैधानिक अधिकार प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद की भाषा में कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
4. यह मुद्दा राजनीतिक नहीं है, बल्कि संवैधानिक और मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।
नमो नमो संगठन यह आग्रह करता है कि किसी भी भाषा को अनिवार्य बनाने की नीति पर पुनर्विचार किया जाए।भाषा के नाम पर हो रहे दबाव और उत्पीड़न को रोका जाए।सभी भाषाओं को समान सम्मान दिया जाए, जैसा हमारे संविधान ने निर्धारित किया है।हम एकता में विविधता के सिद्धांत को मानने वाले हैं। हिन्दी को प्रेम करें, न कि उसे भय और दमन का माध्यम बनाएं।