मुंबई वार्ता/हरीशचंद्र पाठक

गोवंडी स्थित पंडित मदन मोहन मालवीय शताब्दी अस्पताल के साथ नवनिर्मित मेडिकल कॉलेज को एक निजी संस्था को देने की कवायद शुरू है।इसके लिए तीन संस्थानों ने अभिरूचि पत्र जमा किया हैं। इन तीनों में से किसी एक योग्य संस्था का चयन किया जाएगा। जिसके कारण शताब्दी अस्पताल की स्वास्थ्य सेवा निजीकरण की राह पर किए जाने की संभावना बढ़ गई है।जिससे कर्मचारियों के साथ-साथ मरीजों में भी रोष व्याप्त है। इस कारण शताब्दी अस्पताल के निजीकरण का हर स्तर पर विरोध हो रहा है।


बता दें कि गोवंडी स्थित शताब्दी अस्पताल के निजीकरण की तैयारी पिछले डेढ़ साल से चल रही है। इसके लिए डॉक्टरों समेत स्टाफ की संख्या कम कर दी गई। तकनीशियन के पद नहीं भरे जा रहे थे, जबकि ईसीजी जैसे मेडिकल उपकरण चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों द्वारा संभाले जा रहे थे। बताया जाता है कि 210 बिस्तरों की क्षमता वाला यह अस्पताल अब सिर्फ़ एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनकर रह गया है।


सूत्रों ने बताया कि मनपा प्रशासन जानबूझकर चिकित्सा सेवाएँ उपलब्ध नहीं करा रहा है। अब इस आरोप की सच्चाई सामने आ रही है और मनपा ने अस्पताल के निजीकरण के लिए निविदाएँ आमंत्रित की हैं। गौरतलब है कि पूर्वी उपनगर में घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल के बाद शताब्दी अस्पताल एक बड़ा अस्पताल है।
शुरू शुरू में अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध थी। जबकि वर्तमान समय में विभिन्न मेडिकल जाँचों के नाम पर मोटी रकम वसूली जा रही है।
वर्तमान समय में विस्तार कार्य प्रगति पर है और 210 बिस्तरों की क्षमता को बढ़ाकर 580 बिस्तरों तक किया जाएगा। नई क्षमता में 390 सामान्य, 55 आईसीयू और 190 सुपर स्पेशियलिटी बिस्तर होंगे। इस साल के अंत तक एक मेडिकल कॉलेज भी शुरू होने की चर्चा है।
अस्पताल के निजीकरण का विरोध जताते हुए
जाने माने आरटीआई एक्टिविस्ट मनोहर जरियाल ने कहा कि शताब्दी अस्पताल में इलाज के लिए मानखुर्द, गोवंडी , चेंबूर और नवी मुंबई के गरीब वर्ग के लोग आया करते हैं। एक बार इस अस्पताल का निजीकरण कर दिया गया तो आम गरीब जनता को इलाज के लिए दर दर भटकना पड़ेगा। जरियाल के अनुसार मुंबई मनपा का सालाना बजट देश के अन्य कई छोटे राज्यों के बजट से ज्यादा है। फिर मनपा अस्पतालों का हजारों करोड़ का सालाना बजट कहां खर्च किया जाता है ऐसा सवाल मनोहर जरियाल ने उठाया है।
जरियाल के अनुसार एक बार निजी संस्था को अस्पताल से जोड़ दिया गया, तो इलाज की दरें बढ़ जाएँगी और मुफ़्त सेवाएँ धीरे-धीरे कम होती जाएँगी। अस्पतालों में निजी संस्थानों को लाने का मतलब है सार्वजनिक संपत्ति पर कब्ज़ा करना। यह योजना स्वास्थ्य सुधार के लिए नहीं, बल्कि चंद लोगों के हितों के लिए बनाई गई प्रतीत होती है। जनता का पैसा, जनता का विश्वास और जनसेवा, तीनों को निजी हाथों में देने की कोशिश की जा रही है। यह न केवल गैर-ज़िम्मेदाराना है, बल्कि जनता के अधिकारों पर सीधा हमला है।
इस बीच, स्थानीय लोगों ने शताब्दी के निजीकरण का विरोध किया है।संत गाडगे महाराज एक चलवल नामक सामाजिक संगठन ने आंदोलन की चेतावनी दी है। पिछले एक साल से वे शताब्दी के निजीकरण के खिलाफ अनेकों अभियान चला रहे हैं। युवा समाजसेवक राजेंद्र नगराले ने कहा कि वे सभी राजनीतिक दलों से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील करते हुए रास्ता रोको आंदोलन करेंगे।


