मुंबई वार्ता/सतीश सोनी

पिछले कुछ दिनों से विपक्ष मांग कर रहा है कि राज्य सरकार को पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य नहीं करना चाहिए। इसके लिए विपक्ष लगातार आक्रामक रहा है। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने एक साथ मार्च करने का फैसला भी किया था। इस बीच, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आज अधिवेशन की पूर्व संध्या पर घोषणा की कि १६ अप्रैल और १७ जून के त्रिभाषी नारे के दोनों फैसले रद्द कर दिए गए हैं।


उन्होंने कहा कि हमने यह स्थिति उस दिन पेश की थी जिस दिन दूसरा जीआर जारी किया गया था। हम ऐसे मुद्दों को सर्वसम्मति से बनाना चाहते हैं। हमारे मंत्री दादा भुसे सभी के साथ चर्चा करेंगे। वे सभी के सामने तथ्य रखेंगे। यदि तीसरी भाषा नहीं सीखी जाती है, तो मराठी बच्चों को अंक नहीं मिलेंगे। हालांकि, अन्य माध्यमों के लोग आगे बढ़ेंगे। मराठी अनिवार्य है, मराठी और गुजराती माध्यमों के लिए अंग्रेजी अनिवार्य है। हमारे मराठी बच्चों को क्रेडिट अंक नहीं मिलेंगे। जब प्रवेश की बात आएगी, तो मराठी बच्चे पिछड़ जाएंगे। इसलिए हमने दादा भुसे से कहा कि ये सारे तथ्य नेताओं के सामने रखे जाएं, विद्वानों के सामने रखे जाएं, नए नेताओं के सामने रखे जाएं और फिर विचार-विमर्श करके कोई निर्णय लिया जाए।
फड़णवीस ने कहा कि मुझे लगता है कि राजनीति करने का गलत तरीका अपनाया जा रहा है।हमने कैबिनेट मीटिंग में चर्चा की। त्रिभाषा फॉर्मूले के संबंध में राज्य सरकार की ओर से डॉ. नरेंद्र जाधव के नेतृत्व में एक समिति बनाई जाएगी जो तय करेगी कि इसे किस कक्षा से लागू किया जाए, बच्चों को क्या विकल्प दिए जाएं। डॉ. नरेंद्र जाधव कुलपति थे, हम उन्हें शिक्षा विशेषज्ञ के रूप में जानते हैं। उस समिति में कुछ अन्य सदस्य भी होंगे। हमने १६ अप्रैल, २०२५ और १७ जून, २०२५ के दोनों सरकारी फैसलों को रद्द करने का फैसला किया है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आज कहा कि नरेंद्र जाधव समिति की रिपोर्ट आने के बाद हम अगला फैसला बताएंगे।